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________________ निधाची तप भट्ठयिह गोयरगं तु तहा सत्तेव एसणा। अभिग्गहा य जे अन्ते भिखारियमाहिया ।' आठ प्रकार की गोचरी (गोचराग्र) और सात प्रकार को एपणाएं तथा अन्य जो अभिग्रह आदि हैं यह सब भिक्षाचारी तप है ! भिक्षाचरी के आठ भेद में छह भेद ऊनोदरी तप के प्रकरण में भी उत्तराध्ययन नग के अनुसार बताये गये हैं। जैसे पेटिका, मधपेटिका आदि । इसके दो भेद और हैं - जगति तथा वक्रगति । इस प्रकार भिक्षाचरी के फुल माठ भेद ये हुए१ पेटिफा-पेटी (मन्दूक) की तरह गांव के घरों के चार भाग वनाकार नौकोर गति से भिक्षा करना । २ अपेटिका-आधी सन्दूक की तरह यो भाग में भिक्षा करना। ३ गोमूनिफा-गौमूत्र की धारा की भांति विरल टेडी-मेढ़ी गति को मिक्षा करना। ४ पतंग योधिका-पनंगे फो तरह उड़ती हुई बीच-बीच में परों को छोड़ती हुई गति से भिक्षा करना। ५ शंगायतांस की भांति गोल सपकारबार गति से मिक्षा ना . ६ गत्या प्रत्यागता-दर जाकर वापस नीधा लोट आना, ए ओर जाते हए गोरी करे, दूसरी ओर आहए गोचली पारे। ७ एजति-पारल । ६ ५ गति--टेको मति । Wrir गातो सपा उपमान में इन दोंगी कोई नहीं है। की नोमनीगर में और नागरी सर में ही में भेद ही साये कि मन में नोटो प्राइन न ! Emaira शाका राशि में frey fना के Rar aanterwewrenimamsuman
SR No.010231
Book TitleJain Dharm me Tap Swarup aur Vishleshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMishrimalmuni, Shreechand Surana
PublisherMarudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
Publication Year1972
Total Pages656
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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