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________________ भिक्षावरी तप २४७ गया है। प्राचीन समय में भगवान महावीर के निप्य जिस समय भिक्षा करते थे उसका वर्णन भी सूत्रों में आता है। उत्तराध्ययन सूत्र के समाचारी प्रकरण में बताया गया है .. पढम पोरिसि सज्झायं चीयं क्षाणं शिवाय । तइयाए भिक्खापरियं पुणो चउत्योइ सन्सायं ।' मुनि पहले प्रहर में स्वाध्याय करे, दूसरे प्रहर में ध्यान करे, तीसरे प्रहर में शिक्षा के लिए जाये और चौधे प्रहर में पुनः स्वाध्याय करें! इस विधान के अनुसार तो मिक्षा का काल तीसरा पहर ही है। तो गया लाज भी यही काल मान्य है ? इस प्रश्न के समाधान में हमें आगमों की मूल भावना को देखना चाहिए । प्राचीन गाल गो नागरिक जीवन की जो विधि मिलती है, उसके अनुसार उस समर भोजन का समय प्राय: मध्यान्होत्तर साल ही था । आम भी अनेक प्रदेशों में १२-१ बजे के समय ही भोजन किया जाता। इसलिए होमकता है कि उस समय की प्रथा के अनुसार तीमा पहर ही भिक्षा ना मगर मान लिया गया हो! उत्तरप्यान गो बाशि के अनुसार गाविधान जागं यिनि । "उत्सर्गतो हिनतीय पौरप्यामेय भिक्षाटनमनुजातम् ---उन विधि (सामान्य विधि) के अनुसार तीसरे पहर में ही भिक्षा मनी नाहिए। किन्तु मा बाम में यह भी कहा है-- मकानं स पिचन्जिता माले हाल सपायरे' भागना छोरालमा पर ही सब कार्य करना चाहिए। air भी मात क शा में समय में शिक्षा maratmanuraduate Y E : लार २१३३.५
SR No.010231
Book TitleJain Dharm me Tap Swarup aur Vishleshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMishrimalmuni, Shreechand Surana
PublisherMarudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
Publication Year1972
Total Pages656
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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