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________________ भिक्षाची तप २४५ इस माहार को लेने से पश्चात्कर्म आदि दोप तो नहीं लगेगा ? यदि मेहमान आदि के लिए बनाया हो तो लेने से उन्हें कमी न पड़ जाय जिससे दुबारा बनाना पड़ेगा उन्हें बुरा लगे, तो वह आहार भी न लेथे। किसी गर्भवती स्त्री के लिए बनाया हो, और वह सा रही हो तो उसका भोजन भी नहीं लेवे ।२ गरीबों और भिखारियों को देने के निमित्त बनाया हो तो वह आहार भी भिक्षु के लिए अकल्पनीय है । दो साझीदरों का हो और दोनों की पूर्ण सहमति न हो तो वह भी न लेवे । इस प्रकार प्राप्त आहार को भागम के अनुसार भी एपणा करें और व्यवहार के अनुसार भी। साधु का उद्देश्य सिर्फ भिक्षा लेना, पान या पेट भरना माम नहीं है, किन्तु शुद्ध और निर्दोष भिक्षा मेना है, यह मुद्ध भिक्षा मिले तो लेयें, न मिले तो अदीन भाव के साथ पुनः गगाली लोट आये ! यह न सोने कि देखो, गौसे लोग हैं ? कसा गांव है कि यहाँ भिक्षा ही नहीं मिलती ? प्रकार का संकल्ल भिक्षु मन में हो न लावे । किन्तु यह सोने किलो, कोई बात नहीं, आज भोजन न मिला तो तपस्या का ही प्रसंग प्राप्त हुआ। किन्तु अपने आचार में किसी प्रकार का दोप न आने दे ! भिक्षा का फाल जिसमा महत्व और नीरज जैन श्रमण को मिला का है, ना ही उनकी विधिमा विधिपूर्वक समय पर किया गया काम ही सरानीमा है। यदि मोसमय मुका मार दिया जवि मोजागी प्रकारे मान लीनिया होगी। इसीलिये महावत है..."समय का हमा गोता .ममा पाने पर नारा मामी को होगा । मलों में आमिर को निगम शामिनाये उनका मान भी
SR No.010231
Book TitleJain Dharm me Tap Swarup aur Vishleshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMishrimalmuni, Shreechand Surana
PublisherMarudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
Publication Year1972
Total Pages656
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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