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________________ २१९ कनोदी तप विशेषण है, और ये पल बाल मे कोतक है. यि साधना करने वाला सदा ही आहार की जनोदरी गरता है। जैन दर्शन तो यह भी मानता है कि नाम साना, अल्पाहावी होना, मनुष्य के मुगा नानाग्य का सूचक है। जो प्राणी जितना ही भाग्यशाली होगा, सुगी होगा तथा उन्नत होगा, उगे भूरा भी उतनी ही कम लगेगी और वह सदा कम नौजन में ही मंतुष्ट हो जायेगा, इस बात की पुष्टि के लिए आपके मक्ष प्रापना गुम (२८ या पद गा यह प्रशारण बताता हूँ। भगवान में पूछा गया नया तिन भादि लोहको आहार करने पीछा गितने समय में होली ? उत्तर में मनाला ---- गार जीव मन्तहान (४८ मिनट में भोतमी) में भारी का सियन जीन समन्य प्रति समय उत्कृष्ट यो दिन में आपका हो । मनुराहत कष्ट तीन दिन में .... गतिमा मनु तीन दिन में, गरेर मोदिनी आम दिनोrtert samiti Art i बारे में गोरा में
SR No.010231
Book TitleJain Dharm me Tap Swarup aur Vishleshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMishrimalmuni, Shreechand Surana
PublisherMarudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
Publication Year1972
Total Pages656
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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