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________________ और में दिनोई चाय पारणको, और उसमें भी गिर मोती पनि माने और याको अगा पातु गो परिग्रह न माने तो नाम तक गंगा चा ? दिनमा पनि , तो भोजन, पार और शरीर पीपरि. मा । जब शरीर की रक्षा करो हो, भोजन भी करते हो. पाप-सारण आदि भीगते हो तो फिर या साय पनिमा यमाही अटक गया? पपात मे बस्नको परिग्रह मानना जैन-दर्शन मेमनी नाना प्रगट पाता परिमा ?मा स्पष्टीकरण जैन-नन म बानी कर का:-- मुच्छा परिरगहो पत्तो मूळ परिग्रहः२ मादिगाभाय है, ममत्य है जो गरीर भी परिणत हो गाता है और वा भी । यदि भूभास नहीं है, तो न बन परिणा है, और न हरीर पनिया है। यस्य- पाको मर्यादा सोम याा रहा था कि ममम मात्रा मनाने के लिए नामर गो नाम पाय आदि कारणों की आय होती है, जायता के अनुगार ओर म . मन मात्र आदि सागमा पानी, किन्तु माना है सो पनि गातारा । मदिरा भी महतो मा जायेगी मानी हो। Hart HIT भी चार या जागरि माया HTETऔर विाि--- १) म :मार्गमा पर शोर furi xfrr (ोर (महाभार) पार शीन irrier am
SR No.010231
Book TitleJain Dharm me Tap Swarup aur Vishleshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMishrimalmuni, Shreechand Surana
PublisherMarudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
Publication Year1972
Total Pages656
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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