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________________ 波嶭 ;PPT) 1000-1000-10000 शुभ कामना मनहर कवित विश्व को विकास पुन्य-पुंज को प्रकाश अहा, पापों के विनाश हेतु तप ही प्रधान है। ज्ञान को निवास, सत्य - शील को आवास महा, दया को उजास खास कहा वर्धमान है । ताही को स्वरूप अनुरुप मेरे गुरुदेव, करि के प्रयास उसे रक्खा एक स्थान है । श्रीचन्द चार चाँद सजाकर लगाय दिये, पायेंगे सरस यश 'शुकन ' महान है ||१|| नया अति उज्वल आतम की करणी, तप रूप जिनेश्वर ने धरणी, तरणी- भवसागर नाव चनी, दिव-लोक-पया शिव निस्सरणी । अरनी अघ जाल जरावन को, तप दोय विधी जग उद्धरणी, इस पीथिन मे सहि राह मिली, जिम बालक को जु मिलो जननो ॥२॥ सोन्या आछो ओ आनन्द, मैं पिण पायो मोकलो, गह्यो हाथ में ग्रन्थ, तपरो तत्त्वों सुं भर्यो ||३|| मरुधर के शिरमोड़, मरुधर केसरी जाणिये, ग्रन्थ लिखा अनमोल, जैन-धर्म में तप महा ||४|| देश । फली शुकन मन भावना, पूर्ण करी गुरुदेव । शासणपति दीजो सदा, सुगुरु-पद-कज सेव ॥५॥ - मुनि शुकन धगड़ी नगर जतसिंह जैनगढ़ २१-१०-३२ 50 500-5 EVENI PEA
SR No.010231
Book TitleJain Dharm me Tap Swarup aur Vishleshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMishrimalmuni, Shreechand Surana
PublisherMarudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
Publication Year1972
Total Pages656
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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