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________________ जनावरी तप २०७ के बिना यह तप नहीं हो ममता । इसलिए निराहार रहने की अपेक्षा आहार करते हुए पेट को खाली बसना, अधिक संयम व मनोयल का कार्य। दूसरी बात यह कि उपवास आदि में शारीरिक बन, सामर्य, एवं स्वास्थ्य आदि की अपेक्षा रहती है किन्तु जनोदरी तप तो रोगी, कमजोर और दुर्वल भक्ति भी कर सकता है । यस्कि नोदरी में अनेक रोग भी निट जाये है, अस्वस्थ व्यक्ति स्वस्म हो जाते हैं। रोगावस्था प्रधान आदि प्रत्येक परिस्थिति में वानमः, वृस, आदि सभी दम तप गी आराधना कर सकते है। इसलिए नीदरी तप पाटिन भी हैं और सवंगुलम भी। मोटामा पान्य, विवेक और धमंशान होने पर हर कोई नायक मतप का मानकर जनोदरी काम घरप नोटरीमा प्रचलित अर्थ प्रायः 'काम माना में लिया जाता है। प्राआहार, परिमित बाहार आशिमलों में नारी का प्र मा यपि जन सूत्रों में जगोदरी में सम्मान में बहुत ही सरम माया गया । आहार की भांति. वाय. उपरम आदि को भी तोरीको प्रत्येग बाण मा मंगम गरना, आपम्यानासोकोमा विरोध पारगान या अनोद तप को किया गया। जिसकी हमें भाषा गाया में विकार करना, मी माता म. मालिका गरमा और रिमेय का काम होममेकर मामा मामीभाव ARE से गायनाच A pr क्षेत्र में, ན ཨ* gi gro ཙi༣ ཨ ཀཾ ་ ་ ༢:; ; ; ་ པ : +-- f: ་ ; ཝཱ༔ ཨ༔ ས པ : ,, t:པ༔ ཚུ་ ; ; ::
SR No.010231
Book TitleJain Dharm me Tap Swarup aur Vishleshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMishrimalmuni, Shreechand Surana
PublisherMarudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
Publication Year1972
Total Pages656
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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