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________________ अन धर्म में तप २०२ आयु घटती ,, प्राणी मरता है इसे 'जावोनिमामिल मर हो। इमरण या आत्मपरिणामों पर कोई विशेष प्रभाव नहीं पता। इसके बार अन्य प्रकार के कई मरण यताये -जैसे अनधिमरण, अंतिम मरण, बसन्मरण, बनातं मरण, तद्भव मरण, पंडित मरण, बाल-पंधित मरण, मयति (पंधित-पंडित) मरण । अत में तीन गरण बताये गये है-मक्त परिना मरण, इंगिनी मरण, पादोपगममरण-इन तीन मरणों का सम्बन्ध अनदान (मंगासामलेगना) के साथ है। जीवन के अन्तकाल में जब माया देखता उसका आगु, बल आदि क्षीण होने लगे, दागेर गलने लगा है, राय आग. शुद्धि के लिए भूतकाल में किये गये दोप, अतिनार आदि की मग आली. जना करता हुआ आहार पानी आदि का प्रत्याग्मान गरको समाधिन गार मरणाभिमुन स्थिति को स्वीकार कर लें। भक्त परिजा मरण को स्वीकार करना ही भक्त प्रत्यारगान सपालामा है। इस सपने गावज्जीवन के लिए माहार (तीनों आहार) अगया आहारपान (नारों माम) का त्याग किया जाता है । आहार प्रसारयान करणे साधक मसरा स्वायमान आत्मनितन, क्षमापना आत्मालोनन में ही अपना समग विशाता है। उसने मन में जीवन के प्रति वितुन होगह नहीं ALL जय गौ महीना मोग-यार की वंदना ग काट नहीं दे गमती, अगर मन में किसी प्रकार का गलग पहा नहीं हो समता र सदा गमाधि पग मामा मुग पर जगमगाताना नमन में मार- माग गेष्टाओाग मी मा मत रही लोनी मेला मुभमाय भी करता art, नीलगना, अपना रिमोहाय पाई, मीना और मार गरमागनिया भी करना। गोवार गापा--गिरम भात, प्रसाद में
SR No.010231
Book TitleJain Dharm me Tap Swarup aur Vishleshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMishrimalmuni, Shreechand Surana
PublisherMarudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
Publication Year1972
Total Pages656
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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