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________________ जैन धर्म में ता .. एक वर्ष का समय बीतता है इसलिए इसे गुणरत्न संवत्सर तप कहते हैं । इसमें तपो दिन १ वर्ष से अधिक होते हैं इसलिए भी इसके साथ संवत्सर नाम जुला है । इसमें प्रथम मास में एकान्तर उपवास किये जाते हैं, १६ उपवास और १४ पारणे होते हैं । द्वितीय मास में बेले-येले पारणा, तृतीय में तेलेगी इस प्रकार क्रमशः बढते हुए सोलहवें महीने में सोलह-सोलह का त किना जाता है। तपस्या के साथ दिन में उत्कुटुकासन से सूर्य के सामने बैठकर :: मातापना ली जाती है, और रात में वीरासन से वल्म रहित रहा जाता है। सम्पूर्ण सर में १६ मास ७ दिन लगते हैं, जिसमें ७३ दिन पारने के आरो। अक्षोम सागर मुनि (अंतगढ़ २) ने इस तप की आराधना की थी। चित्र . देखिए परिशिष्ट १ में। आयंबिल यधमान तप-आयंबिल को परिभाषा पोछे बतायी जा चुगी । है । भुना हुआ,तथा रंधा हुआ एक प्रकार का हो भन्न पानी में भिगोकर दिन में एक बार साना आयंबिल कहलाता है। बधमान पा अर्थ है निरंतर ते जाना । पहले दिन १ आयंबिल, फिर दो आयंबिल, फिर उपवास, तीन आय. दिल फिर जगवास बों बलाते हुए सो आयंबिल तक ले जाना और बीन. बीच में उपवास करते जाना आयंबिल वर्धमान तप कहलाता है। ग.तर में कुल २४ वर्षगाम और धीस दिन का समय लगता है । अंतगटनम में अनुगार महागती महागेन या ने इस तप की आरापना की थी। प्राचीन राज्यों एवं परम्परागत मागताओं में उस तपः निधियों में आप. विश मना भी अनेक प्रकार के मालित है । पुछार प्रानीन पर . की स्मृति में किये जाते आराधनाम पर पी ने अपन में। पति कार में लिये जाने वाले तप को गंम्मरमाग का भी यह मा ।। पुछ राप पर्तमान में कहा ही प्रमिला --- (१) यसप-प्रपम गोयंकर भगा कमाने जामा माटी मोदी पी पी. मी दिनमा कर मार रिमा पनन और पलादि करते g: होम द्वारा ना ! को
SR No.010231
Book TitleJain Dharm me Tap Swarup aur Vishleshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMishrimalmuni, Shreechand Surana
PublisherMarudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
Publication Year1972
Total Pages656
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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