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________________ अनुसार पग तप में एक वरण आगे बढ़ाकर फिर पीछे अाया जाता है, और फिर अगले चरण में एक चरण आगे बढ़ा जाता है। मकी पहली परिपाटी में १० मास १५ दिन लगते हैं। नारों परिपाटो में वर्ष १० मान सामय लगता है। पहली परिपाटी के पारणे में विगय आदि सय स लिये डा गरते हैं। दूसरी परिपाटी में पारणे में विगय का त्याग, तोमरी में पका भी त्याग और चौथी परिपाटी में पारणे में आयं. बिल किया जाता है। जिसे स्पष्ट समझा जा सकता है। अंतगा गुर के गणंगानुगार इसकी आराधना महासतो प्रियरोनकाया ने की थी। रत्नायलो तप-रत्नमनियो को मायति बनाने सीपलाना के अनुसार इस तप की विधि का जागरण किया जाता है। उपयामी १६ तर वा जाता है और फिर जमी से उतारा जाता है। एक परिपाटी में १ ३ नाम २२ दिन नगते सम्पूर्ण तप में ५ वर्ष २ माग २८ दिन लगते हैं। पारणे में विजय जादि यजन गारो परिपाटी में सिर में ही चलता । परिनिष्ट गत चित्र में इनकी रसना समझी जा सकती। एकायलों तप -- नदी के नारो रगना को गलनानुगार इस तर पानाचरण किया गया है। वामगोलायक नहना और फिर मी पर से आरना । एक परिपाटी में २ मास मोर २ दिन का समय जगता।। नानपरिपाटी में कुल ४ व गार और ना समय मगता में गई म प्राला हो दूरी परिवार में पारण में विग माग, न मेरमा पप गोदी में आलिया । विनिट में। शनशाली परममियागारको Upar K a । विमाटी में नाम दिन मा पसिनी में १ मा विशिक्षिका रहने r की दवा ai M TAREE में मन पर (ries in Ma
SR No.010231
Book TitleJain Dharm me Tap Swarup aur Vishleshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMishrimalmuni, Shreechand Surana
PublisherMarudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
Publication Year1972
Total Pages656
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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