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________________ जैन धर्म में कर १८६ अशान तथा एकसान । प्रवचन मारेला एकाशन त के अनुसार एकाशन बोलचाल की भाषा यति हो, जिग कि एकाशन तप है। एकाशन शब्द से दोनों ही अयं ध्वनित होते है-एक+ अगन तथा एक-आसन ! प्राकृत 'एगासण' शब्द से एकाशन एवं एकासन दोनों ही अर्थ होते हैं। प्रवचन सारोदार वृत्ति में कहा है-एक आसन पर बैठकर दिन में एकबार भोजन करना-एकाशन तप है ! प्रानी परम्परा के अनुसार एकाशन में पौरपी के बाद ही एकबार आहार किया जाता है। (५) एकस्यान-बोलचाल की भाषा में इसे 'एकलठाणा भी पाहते हैं। . . भोजन प्रारम्भ करते समय शरीर की जो स्थिति हो, जिग स्थिति में बैठे .. हों, भोजन के अंत तक उसी स्थिति में बैठकर भोजन गारना एकरमान सा है। इसकी विशेषता यह है कि, दाहिने हाय एवं मुरा के सियाग गरीर के किसी भी अंग को हिलाए बिना दिन में एक आगन से एकबार भोजन (1) आयंबिल-इस तप में सब रस (विगय)-धी-दुध मादि एवं जगण का भी त्याग किया जाता है। इस तप में दिन में एकबार भोजन किया जाता है, भोजन में कोई भी एक नम आहार जैसे उबले हुए बागने, भुने हुए नने, सत् उड़द, चावल आदि एक प्रकार का अन्न लिया जाता है, यह भी लवण रहित और अन्न को पानी में भिगोनार लेना होता है। इस तर में । स्यादिन्द्रिग का संगम ही मुख्य बात है। (७) दिवस चरिम-दिन के अन्तिम भाग में, अर्थात् सुर्यास्त के समा, किन्तु सूर्यास्त से पहले दूसरे दिन सूर्योदय तक को लिए तिमिहार मा चीनिहार प्रत्यापमान मापना दिवस सम्म तप (प्रत्याग्यान) है। इस प्रत्यापान में राति भोजन का भी स्वतः त्यार हो जाता है। जो कि श्रावक के लिए भी पर मासपूर्ण तप है। (८) रामि भोजनत्याग तप (नित्यतप)---थि भोजन या शाम .. गरना एम. बहामा। बिले गिता पहा गया है। मुत्र में बता सहोनिरचं तयो काम' रात्रि मौलनामाग पर प्रकार मान , मार दिन यस मनिनों को सहन कर में हो जाता l -
SR No.010231
Book TitleJain Dharm me Tap Swarup aur Vishleshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMishrimalmuni, Shreechand Surana
PublisherMarudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
Publication Year1972
Total Pages656
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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