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________________ हने गावी संधान महावत है न हीन भावना चाहिए जैन धर्म में सप फन्तु करे इसीलिए कि उससे संयम, सेवा, अहिंसा, त्याग आदि की प्रवृत्तियों को बढ़ावा मिले । स्वाध्याय, ध्यान, आदि की वृद्धि हो । यदि इन गायों की आराधना में शरीर पीछे हटने लगे तो फिर इस शरीर का मोह नहीं रखकर इसे उपवास, तप, अनशन संलेखना आदि में झोंक देना चाहिए। इसीलिए जहाँ छह कारण आहार करने के बताये हैं, वहां आहार लाग - करने के भी छह कारण बताये गये हैं। आहार त्याग के छह कारण शास्त्र में कहा है-- आर्यके उवसग्गे तितिक्षणे बंभचेरगुत्तीसु पाणीदया तवहे सरोरवोच्छेयणट्ठाए।' १ रोग होने पर-रोग में आहार करने से रोग और अधिक प्रयत होता है, इस लिए रोगादी लंघनं यः-रोग की आदि में लंघन- उपवास अच्छा रहता है । राजस्थानी में कहावत है ___ ज्वर जाचफ अफ पावणा लंघन तीन फराय इन सबका भाव है-रोग होने पर भोजन नहीं करना चाहिए। (२) उपसर्ग-संकट आदि आने पर, उपरागं होने पर आहार त्या कर उपसगं सहने में स्ट जाय । (३) ब्रह्मचर्य में कठिनाई होने पर यदि भोजन करने से मनोविकारों की वृद्धि होती हो, ब्रह्मचर्य की साधना में कठिनाई भाती हो, तो नाहार का त्याग कर ब्रह्मचर्य की साधना में स्थिर रहे। गांधीजी इसीलिए कहते . पे-"उपवास से शारीर के रोग तो शान्त होते ही हैं, मन के धिकार भी पान्त हो जाते हैं । अपात सरीर एवं मन नि । निविदा है।" तो भोजन करने से पदि होता हो तो माहारमा त्याग कर देखें। (२) मन में एक ना होने पर अपनाई जाती है। इसीलिए पहले ...
SR No.010231
Book TitleJain Dharm me Tap Swarup aur Vishleshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMishrimalmuni, Shreechand Surana
PublisherMarudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
Publication Year1972
Total Pages656
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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