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________________ [ १२ ] प्रेरणा का ही फल समझना चाहिए । तप सम्बन्धी चित्रो को तैयार कराने में श्री मुकन मुनि जी ने काफी मार्गदर्शन किया है, तप न थ के अंत मे तप से सम्बन्धित सूक्तियो को सकलित कर प्रस्तुत करने का श्रेय-श्री 'रजत' मुनि जी को ही है । इस प्रकार अपने सम्पादन मे मैं इन दोनो मुनिवरो को अपना सहयोगी मानकर उनके प्रति भी हार्दिक कृतज्ञता व्यक्त करू तो सभ्यता की दृष्टि से भी यह उचित ही होगा। पुस्तक जैसे-जैसे तैयार होती गई, छपती गई, इस कारण कुछ आवश्यक मदर्भ जो कि विलम्ब से प्राप्त हुए, मूल अध्यायो मे नही दिए जा सके । उन्हें सक्षिप्त रूप से परिशिष्ट मे परिवर्धन शीर्पक से दिए हैं, पाठक उघर भी दृष्टि डालें ! ___ इस पुस्तक में जो कुछ विचारप्रधान, प्रेरणादायी और सार तत्व है, वह मूलत गुरुदेव श्री मरुधर केसरी जी म० का ही है । यदि प्रमाद या अज्ञानवश कही कोई स्खलना प्रतीत हो तो उसका उत्तरदायी मैं स्वय को मानता हूँ । सुलजन मुझे सूचित कर अनुग्रहीत करेंगे । आशा है मेरा यह प्रयत्न-अपने गुरुजनो के प्रति एक श्रद्धा-पुष्प सिद्ध होगा, तथा पाठको के लिए एक तैयार गुलदस्ता । वे स्वय इमकी सौरभ लें, दूसरो तक पहुंचाए -बस, इसी भावना के माथ विजयादशमी -श्रीचन्द सुराना 'सरस' आगरा
SR No.010231
Book TitleJain Dharm me Tap Swarup aur Vishleshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMishrimalmuni, Shreechand Surana
PublisherMarudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
Publication Year1972
Total Pages656
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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