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________________ १०५ निदान . तप (मोक्षमार्ग) का पलिमंथु : निदान पर फसल पावस, वह तो अपनी खेती का भी दूसरों की तरह पर बाली चली तो पहले पांच सौ कमल टूट जाता है, वह भी दूसरों की भांति आजादी से हाथ में नोट लेकर घूमना चाहता है । उसने पांच सौ में अपनी खेती वेच डाली। दूसरा साथी मेहनत करता गया, फल के लिए उसे कोई अधीरता नहीं थी। मन में कोई लालसा नहीं थी कि में भी दूसरों की तरह आजादी से घूमू-फिरूं ! वस, वह तो अपनी खेती की देखभाल में लगा रहा । समय पर फसल पकी, एक-एक बेल को सैकड़ो अंगूर लगे, ग्राहक आये, पांच हजार से बोली चढ़ी तो पचीस हजार में खत्म हुई । वह पच्चीस हजार के नोट लेकर घर आया। पहले ने पांच सौ कभी के खत्म कर डाले थे, जब उसने . अपने साथी की पच्चीस हजार में फसल विकी सुनी तो सिर पर हाथ धर कर पछताने लगा-हाय ! यदि मैं भी पांच सौ के लालच में नहीं पड़ता, मौज-शौख के चक्कर में नहीं आता, मेहनत करता जाता तो आज मुझे अपनी फसल की कीमत पच्चीस हजार मिल जाती । खन-खन करते कलदार हाथ में आते ! फिर मन चाही मौज-शौख सब हो जाती !" हाथ में रुपैया तो सारा जगत भया ।" पर अब तो पछताने और सिर पीटने के सिवाय और क्या हो सकता है ? __यही स्थिति तपस्या के बीच भोगों की कामना करने वालों की होती है । दूसरों को मौज-शौख करते देखकर साधक अपने तप को दांव पर लगाने के लिए अधीर हो जाता है कि बस,मुझे भी इस तपस्या के प्रभाव से ऐसा घर मिलना चाहिए, ऐसी पत्नी मिले, राज्य मिले, परिवार मिले, और मैं भी ऐसा आनन्द लूटू! भगवान कहते हैं-"मूर्ख साधक ! तू तप करता है तो यह सब तो अपने आप मिलेगा, इनसे भी अधिक मिलेगा, किन्तु इन तुच्छ अभिलाषाओं के चक्कर में पड़कर अपनी तपस्या को वेच मत ! हीरों को कंकर के मोल मत वेच !" आमों के बगीचे को लकड़ियों के भाव वेच देने वाला मूर्ख होता है, वैसे ही अक्षय मुक्ति सुख प्रदान करने वाले तप को, संसार के तुच्छ भोगसुखों के लिए वेच देने वाला-मूखं, महामूर्ख माना जाता है। निदान क्या है? भोगाभिलापा में फंसकर तपस्या को बेच देने की यह क्रिया ही जैन
SR No.010231
Book TitleJain Dharm me Tap Swarup aur Vishleshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMishrimalmuni, Shreechand Surana
PublisherMarudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
Publication Year1972
Total Pages656
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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