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________________ S तप (मोक्षमार्ग) का पलिमंथु : निदान हमारा लक्ष्य है - आत्मशुद्धि ! आत्मा को पवित्र व उज्ज्वल बनाकर स्वरूप दशा को प्राप्त करना ही हमारी समस्त क्रियाओं का अंतिम लक्ष्य है । . इस लक्ष्य की पूर्ति करने वाला श्रेष्ठ व उत्कृष्ट साधन है तप ! तप एक पवित्र व श्रेष्ठ क्रिया है । उसका फल अचिन्त्य और असीम है । जैसे कल्पवृक्ष से जो चाहे वही वस्तु प्राप्त हो जाती है, चिंतामणि रत्न के प्रभाव से मन में सोचे हुए सब संकल्प सफल हो जाते हैं - तप का प्रभाव इनसे भी अधिक है । इसीलिए तप को सर्व संपत्तियों को 'अमरवेल' कहा है । भगवान ने बताया है भव-कोडी संचियं कम्मं तवसा निज्जरिज्जइ । करोड़ों भवों के संचित कर्म तप से क्षीण व विलीन हो जाते हैं । १ उत्तराध्ययन सूत्र ३०|
SR No.010231
Book TitleJain Dharm me Tap Swarup aur Vishleshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMishrimalmuni, Shreechand Surana
PublisherMarudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
Publication Year1972
Total Pages656
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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