SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 14
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ और सत्साहित्य के निर्माण मे एव प्रसार के लिए उनके हृदय मे अपूर्व उत्साह है, अद्भुत प्रेरणा है और इस दिशा मे राजस्थान के अचलो मे जो कुछ उन्होंने किया है वह एक बहुत वडा कार्य है। __श्री मरुधर केसरी जी म. की वाणी मे ओज है, प्रेरणा है, और मानव मात्र के कल्याण की गू ज है । उनकी लेखनी भी इस दिशा मे पीछे नहीं है। कहा जा सकता है, वे वाणी एव लेखिनी के धनी है। राजस्थानी भापा के साहित्य मे उनकी कविता एव काव्य अपना विशिष्ट स्थान रखती हैं । धार्मिकता के साथ-साथ नैतिकता एव राष्ट्रीय भावना उनके साहित्य का मूलतत्व है। __ कुछ वर्षों से समिति ने श्री मरुधरकेसरी जी म के पद्य एव गद्य साहित्य का प्रकाशन प्रारभ किया है। प्रवचन साहित्य की भी चार पुस्तके प्रकाशित हो चुकी हैं । जनता मे उनका आदर हुआ है, पाठको ने हृदय से अपनाया है। प्रस्तुत पुस्तक 'जैनधर्म मे तप : स्वरूप और विश्लेपण' इसी प्रवचन माला का पाचवा पुष्प है। यद्यपि यह पुस्तक अब तक के प्रकाशनो मे शैली एवं विषय वस्तु की दृष्टि से अपना विशिष्ट स्थान रखती है । यह पुस्तक श्री मरुधर केसरी जी म. के प्रकाशित एवं अप्रकाशित प्रवचन साहित्य का दोहन है, मथन है । तप के सम्बन्ध मे उन्होंने आज तक जो कुछ प्रवचन किये हैं, जो कि लिपिवद्ध हैं, तथा जो काव्य-कविताए आदि लिखी है उन सब के भावो को, सामग्री को वटोर कर-उसका वर्गीकरण किया गया है, उसके मूल प्रामाणिक स्थलो का अनुसघान किया गया है और उसे आधुनिकभाव-भापा के परिवेश मे उपस्थित किया गया है। इस दृष्टि से यह पुस्तक महाराज श्री के सीधे प्रवचन नही, किंतु उनके प्रवचन साहित्य का दोहन कहा जा सकता है। पाठको को इनमे बहुत ही उपयोगी व साधना प्रधान मामग्री मिलेगी। प्रस्तुत प्रस्तक का संपादन श्रीचद जी सुराना 'सरस' ने किया है । श्री सुराना जी एक विद्वान् है, लेखनी के धनी है, जैन आगमो के अभ्यासी
SR No.010231
Book TitleJain Dharm me Tap Swarup aur Vishleshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMishrimalmuni, Shreechand Surana
PublisherMarudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
Publication Year1972
Total Pages656
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy