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________________ जैन धर्म में तप लब्धि तप से स्वतः प्राप्त होती है । तप व चारित्र की उत्कृष्टता होने पर लब्धियों की प्राप्ति अपने आप हो जाती है। जैसे पौष्टिक भोजन करने पर शरीर में शक्ति और स्फूर्ति बढ़ती है, तो रक्त और मांस भी बढ़ता है। भीतर में शक्ति बढ़ने पर वाहर में ओज-तेज जिस प्रकार दिखाई देता है, उसी प्रकार तप के द्वारा तेज प्रकट होता है, तो वह वाहर में स्वतः ही . अपना प्रभाव दिखाने लगता है। इसीलिये भगवान महावीर ने कहा है-: .. सक्खं खु दीसइ तदोविसेसो तप का विशिष्ट प्रभाव संसार में साक्षात् दिखाई देता है । राजस्थानी में कहावत है घी खायो छानो को रेवेनी -~धी खाया हुआ छिपता नहीं है, शरीर पर अपने आप उसका तेज दमकने लगता है, वैसे ही तप भी तपा हुआ छुपता नहीं है । तपस्वी की .. ऋद्धि, तेज और प्रभाव अपने आप ही वोलने लग जाती है । कहा है: ___ जस्सेरिसा रिद्धि महाणुभावा -उस महानुभाव तपस्वी की अपूर्व ऋद्धि, लब्धि और तेज ऐसा . अद्भुत है कि जो देखे वह स्वतः ही नतमस्तक हो जाता है । तपस्वी के चेहरे पर स्वतः ही एक विशिष्ट तेज ओज दमकने लगता है । उसको वाणी ... में सिद्धि, उसकी प्रसन्नता में वरदान तथा आक्रोश में शाप की शक्ति अपने आप आ जाती है । इन शक्तियों के लिए उसे प्रयत्न करने की आवश्यकता नहीं रहती। ___ यहाँ एक प्रश्न उपस्थित होता है कि जव लब्धियों के लिए तप करने की आवश्यकता नहीं है, तो शास्त्र में अलग-अलग लब्धियों के लिए अलगअलग प्रकार की तपस्याएं क्यों बताई हैं ? जैसे भगवतीसूत्र में गोगालक को तेजोलेश्या की साधना विधि बताई गई है। जंघाचरण विद्याचरण की भी साधना विधि बताई है तथा पूर्वी में लब्धियों की विभिन्न साधना पद्धति का वर्णन उपलब्ध था ऐसा उल्लेख किया जाता है तो इसका क्या अर्थ है ? जब लब्धि के लिए तप नहीं किया जाना चाहिए तो फिर उसके लिए तप । की विधि क्यों ?
SR No.010231
Book TitleJain Dharm me Tap Swarup aur Vishleshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMishrimalmuni, Shreechand Surana
PublisherMarudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
Publication Year1972
Total Pages656
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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