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________________ ७६ जैन धर्म में तप भरने से पहले मकड़ी के जाल जैसा तंतु, वटी हुई वाती अथवा सूर्य की किरणों का अवलंबन-निश्राय लेता है, और फिर आकाश में उड़ता है। .. ___ जंघाचारण लब्धि चारित्र एवं तप के विशेप प्रभाव से प्राप्त होती है। भगवती सूत्र में इसकी साधना विधि का वर्णन करते हुए बताया गया है, निरंतर वेले-बेले तप करने वाले को विद्याचारण एवं निरंतर तेले-तेले का उग्र तप करने वाले योगी को जंघाचारण लब्धि की प्राप्ति होती है । जंघा .... चारण लब्धि वाला एक ही उड़ान में (उत्पात में) तेरहवें रुचकवर द्वीप तक जा सकता है । यह द्वीप भरतक्षेत्र से असंख्यात योजन दूर है । इस - . लधिधारक की पहली उड़ान अधिकशक्तिशाली होती है । किंतु उड़ान करने में प्रमाद और कुतूहल होने के कारण लब्धि की शक्ति क्रमशः हीन व क्षीण होने लग जाती है, इस कारण एक उड़ान में रुचकवर द्वीप जाने वाला जव वहाँ से वापस उड़ान भरता है तो वह बीच में थक जाता है, इसलिए वीच में नंदीश्वर द्वीप में उसे एक विश्राम लेना पड़ता है और वह दूसरी उड़ान में . अपने स्थान पर लौट कर आ सकता है। जंघाचारणवाला यदि ऊपर ऊर्ध्व लोक में उड़ान भरता है तो वह सीधा सुमेरुपर्वत के शिखर पर सुरम्य पाण्डुकवन में पहुँच सकता है। यह वन सब बनों में सुन्दर व सबसे अधिक ऊँचाई पर है । जब योगी वहां से वापस लौटता है तो जाने की अपेक्षा आने में उसे अधिक शक्ति व समय लगता है । शक्ति की क्षीणता के कारण उसे नंदनवन में एक विश्राम लेना । होता है, और दूसरी उड़ान भरके अपने स्थान पर पहुंच जाता है। ___ विद्याचारण लब्धि तप के साथ विद्या के विशेप अभ्यास द्वारा प्राप्त होती है। जंघाचारण से इसका तपक्रम कुछ सरल है, उसमें तेले-तेले तप का विधान है, और इसमें वेले-बेले तपका ! उसमें चारित्र की अतिशयता १ लूतातन्तुनिर्वतित पुटकतन्तून् रवि करान् वा नियां कृत्वा जंड्धाभ्या- . माकाणेन चरतीति जंघाचारणः । -भगवती सूत्र वृत्ति २०१६ २ भगवती सूत्र २०१६
SR No.010231
Book TitleJain Dharm me Tap Swarup aur Vishleshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMishrimalmuni, Shreechand Surana
PublisherMarudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
Publication Year1972
Total Pages656
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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