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________________ (१८) और सर्वज्ञ तीर्थंकरोंसे बढ़कर कोई अन्य गुरु हो ही नहीं सक्ता है। तीर्थकर त्रिकालकी समस्त वस्तुओंके ज्ञाता हैं और उनका ज्ञान पूर्ण है जिसके फल स्वरूप उन्हें पूर्णपना अर्थात् सिद्धता प्राप्त है। इस प्रकारकी शिक्षा जैनधर्मकी है। और यह नितान्त ही सीधी साधी वैज्ञानिक ढंगकी है । गुप्त समस्यायों और भेदोंका तो नाम तक नहीं है जैसा कि अन्य मामें पाया जाता है । जैनधर्मके अनुसार निर्वाणका मार्ग सम्यक् चारित्र कर संयुक्त है। अन यह देखना शेष है कि जैन धर्मका आधुनिक सभ्यतापरक्या प्रभाव पड़ता है ? कोई २ 'सभ्य' मनुष्य तो आजकल धर्मके नामसें. हो घबड़ाते हैं। उनका विश्वास है कि धर्मके पालनके साथ ही साथ विचारी सभ्यताका भी अन्त हो जायगा !
SR No.010230
Book TitleJain Dharm Kya Hai
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages29
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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