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________________ अचार्य एकस्यकक्षणं दुःखं मार्यमाणस्य जायते । सपुत्र---पोत्रस्य पुन विज्जीवं हृते धने । -योगशास्त्र २०६८ किसी को मारने पर तो उसे अकेले को, कुछ क्षण का ही दुख होता है, किंतु किसी का धनहरण करने पर उसे, तथा उसके पुत्र पौत्रों को जीवन भर के लिए दुःख होता। . ७. गुणा गौणत्वमायाति याति विद्या विडम्बनाम् । चौर्येणाकीर्तयः पुंसां शिरस्यादधते पदम् । -ज्ञानार्णव १२८ चोरी करने से गुण छुप जाते हैं, विद्या निम्कमी हो जाती है और बदनामी सिर पर चढ़कर बोलती है। ८. तुलामानयोरव्यवस्था व्यवहारं दूषयति । -नीतिवाक्यामृत ८।१३ तोल-माप की अव्यवस्था व्यवहार को, (व्यापार को) दूषित कर डालती है। अदिन्नमन्नेसु य णो गहेज्जा। -सूत्रकृतांग १०२ विना दी हुई किसी की कोई भी चीज नहीं लेना चाहिए। अदत्तं नाददीत स्वं । -योगशास्त्र २०६६ दूसरों का धन विना दिए मत लो।
SR No.010229
Book TitleJain Dharm ki Hajar Shikshaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1973
Total Pages279
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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