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________________ विद्यार्जन का मार्ग १ तओ दुस्सन्नप्पा-दुठे, मूढे, वुग्गाहिते । -स्थानांग ३४ दुष्ट को, मूर्ख को और बहकेहुए को प्रतिबोध देना, समझा पाना बहुत कठिन है। २ अह पंचहि ठाणेहिं, जेहिं सिक्खा न लब्भई । थंभा कोहा पमाएणं, रोगेणालस्सएण वा ॥ --उत्तरा० ११३ अहंकार, क्रोध, प्रमाद (विषयासक्ति), रोग और आलस्य-इन पाँच कारणों से व्यक्ति शिक्षा (ज्ञान) प्राप्त नहीं कर सकता। ३ पियं करे पियंवाई, से मिक्खं लधुमरिहई । उत्तरा० ११३१४ प्रिय (अच्छा) कार्य करनेवाला और प्रिय वचन बोलनेवाला अपनी अभीष्ट शिक्षा प्राप्त करने में अवश्य सफल होता है। ४ चित्तण्ण अणुकलो, सीसो सम्मं सुयं लहइ। -विशेषा० भाष्य ६३७ गुरुदेव के अभिप्राय को समझकर उसके अनुकूल चलनेवाला शिष्य सम्यग् प्रकार से ज्ञान प्राप्त करता है। ५ बुग्गाहितो न जाणति, हितएहि हितं पि भण्णंतो। बृह० भाष्य ५२२८ हितैषियों के द्वारा हित की बात कहे जाने पर भी धूर्तों के द्वारा
SR No.010229
Book TitleJain Dharm ki Hajar Shikshaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1973
Total Pages279
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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