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________________ देव-गुरु १. भवबीजाकूरजनना, रागाद्याः क्षयमुपागता यस्य। ब्रह्मा वा विष्णुर्वा हरो जिनो वा नमस्तस्मै । -वीतरागस्तोत्र-प्रकरण-२११४४ भव अर्थात् जन्म-मरण के बीज को उत्पन्न करनेवाले रागद्वेष आदि जिसके नष्ट हो गये हैं, वह नाम से चाहे ब्रह्मा हो, विष्णु हो, शिव हो या जिन हो, उसे नमस्कार है । महाव्रतधरा धीरा, भैक्षमात्रोपजीविनः । सामायिकस्था धर्मोपदेशका गुरवो मताः ।। -योगशास्त्र २८ महाव्रतधारी, धैर्यवान, शुद्ध भिक्षा से जीनेवाले, संयम में स्थिर रहनेवाले एवं धर्म का उपदेश देनेवाले महात्मा गुरु माने गये हैं। ३ कम्माणनिज्जरट्ठाए, एवं खु गणे भवे धरेयम्बो । -व्यवहारभाष्य ३।४५ कर्मों की निर्जरा के लिए ही आचार्य को संघ का नेतृत्व संभालना चाहिए। ४. स कि गुरुः पिता सुहृद्वा योऽभ्यसूययाऽर्भ बहुदोषं, बहुषु वा प्रकाशयति न शिक्षयति च ॥ -नीतिवाक्यामृत ११३५३
SR No.010229
Book TitleJain Dharm ki Hajar Shikshaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1973
Total Pages279
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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