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________________ १८४ जैनधर्म की हजार शिक्षाएं १७. अन्धादयं महानन्धो विषयान्धीकृतेक्षणः । -आत्मानुशासन ३५ विषयान्ध व्यक्ति अन्धो मे सबसे बड़ा अन्धा है। कामासक्तस्य नास्ति चिकित्सितम् । -नीतिवाक्यामृत ३३१२ कामासक्त व्यक्ति का कोई इलाज नही है । अर्थात् काम-रोग की ___ कोई चिकित्सा नही है। १६. तुमं चेव सल्लमाहट्ट । -आचारांग १२२।४ तू स्वयं ही अपना शल्य (काटा) है। अर्थात् तेरी विषयामक्त वृत्ति ही तेरे लिए काटा है। खणमित्तसुक्खा, बहुकालदुक्खा । -उत्तराध्ययन १४।१३ ससार के विषय भोग क्षण मात्र के लिए सुख देते है, किन्तु बदले मे चिरकाल तक दुःखदायी होते है । २१. अदक्खु कामाई रोगवं। -सूत्रकृतांग ११२।३।२ सच्चे साधक की दृष्टि मे काम-भोग रोग के समान है । २२. देवा वि सइंदगा न तित्ति न तुठ्ठि उवलभंति । - प्रश्नव्याकरण १२५ देवता और इन्द्र भी न (भोगों से) कभी तृप्त होते है और न संतुष्ट। २३. वित्तेण ताणं न लभे पमत्ते, इमम्मि लोए अदुवा परत्था । -उत्तराध्ययन ४/५
SR No.010229
Book TitleJain Dharm ki Hajar Shikshaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1973
Total Pages279
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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