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________________ सम्यग्दर्शन . तहियाणं तु भावाणं, सब्भावे उवएसणं । भावेण सद्दहंतस्स सम्मत्तं तु वियाहियं ॥ -उत्तराध्ययन २०१५ स्वयं या उपदेश से जीव-अजीव आदि सद्भावों में, सत्तत्वों में आन्तरिक-हार्दिक श्रद्धा सम्यक्त्व-सम्यग्दर्शन है । यथार्थतत्त्वश्रद्धा सम्यक्त्वम् । -जैनसिदान्तदीपिका २३ जीवादि तत्वों की यथार्थश्रद्धा (सम्यक्-विचार) करना सम्यम् दर्शन है। ३. या देवे देवताबुद्धि गुरौ च गुरुतामतिः । धर्मे च धर्मवीःशुद्धा, सम्यक्त्रद्धानमुच्यते ।। -योगशास्त्र २२ वीतरागदेव में देव-बुद्धि का होना, सद्गुरु में गुरु-बुद्धि का होना और सच्चे धर्म में धर्म-बुद्धि का होना सच्ची अक्षा कहलाती है। ४, हेयाहेयं च तहा, जो जाणइ सो हु सद्दिट्ठी। -सूत्रपाहुड ५ जो हेय और उपादेय को जानता है, वही वास्तव में सम्यगदृष्टि है। १४५
SR No.010229
Book TitleJain Dharm ki Hajar Shikshaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1973
Total Pages279
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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