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________________ सरलता अविसंवायणसंपन्नयाए णं जीवे धम्मस्स आराहए भवइ । --उत्तराध्ययन २९४८ दम्भरहित, अविसवादी आत्मा ही धर्म का सच्चा आराधक होता है। करणसच्चे वट्टमाणे जीवे, जहावाई तहाकारी यावि भवइ । -उत्तराध्ययन २६५१ करणसत्य-व्यवहार में स्पष्ट तथा सच्चा रहनेवाला आत्मा "जैसी कथनी वैसी करनी" का आदर्श प्राप्त करता है। भद्दएणेव होअव्व पावइ भद्दाणि भद्दओ। सविसो हम्मए सप्पो भेरुंडो तत्थ मुच्चई ।। -उत्तराध्ययन नि० ३२६ मनुष्य को भद्र सरल होना चाहिए, भद्र को ही कल्याण की प्राप्ति होती है। विषधर सांप ही मारा जाता है, निविष को कोई नहीं मारता। ४. एगमवि मायी मायं कट्ट आलोएज्जा जाव पडिवज्जेजा अत्थि तस्स आराहणा। -स्थानांग १२० S
SR No.010229
Book TitleJain Dharm ki Hajar Shikshaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1973
Total Pages279
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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