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________________ ११२ जैनधर्म की हजार विचार (१२) किसी भी निन्दनीय काम में प्रवृत्ति न करे । (१३) आय के अनुसार ही व्यय करे। (१४) अपनी आर्थिकस्थिति के अनुसार वस्त्र पहने । (१५) बुद्धि के आठ गुणों से युक्त होकर प्रतिदिन धर्म-श्रवण करे। (१६) अजीर्ण होने पर भोजन न करे । (१७) नियत समय पर सन्तोष के साथ भोजन करे । (१८) धर्म के साथ अर्थ-पुरुषार्थ, काम-पुरुषार्थ और मोक्ष-पुरुषार्थ का इस प्रकार सेवन करे कि कोई किसी का बाधक न हो। (१६) अतिथि, साधु और दीन-असहायजनों का यथायोग्य सत्कार करे । (२०) कभी दुराग्रह के वशीभूत न हो। (२१) गुणों का पक्षपाती हो-जहां कहीं गुण दिखाई दे, उन्हें ग्रहण करे और उनकी प्रमंशा करे । (२२) देश और काल के प्रतिकूल आचरण न करे। (२३) अपनी शक्ति और असक्ति को समझे । अपने सामर्थ्य का विचार करके ही किसी काम में हाथ डाले, सामर्थ्य न होने पर हाथ न डाले। (२४) सदाचारी पुरुपों की तथा अपने से अधिक ज्ञानवान् पुरुषों की विनय-भक्ति करे। (२५) जिनके पालन-पोषण करने का उत्तरदात्वि अपने ऊपर हो, उनका पालन-पोषण करे। (२६) दीर्घदर्शी हो अर्थात् आगे-पीछे का विचार करके कार्य करे । (२७) अपने हित-अहित को समझे, भलाई-बुराई को समझे । (२८) लोकप्रिय हो अर्थात् अपने सदाचार एवं सेवा-कार्य के द्वारा जनता का प्रेम सम्पादित करे। (२९) कृतज्ञ हो अर्थात् अपने प्रति किये हुए उपकार को नम्रता पूर्वक स्वीकार करे।
SR No.010229
Book TitleJain Dharm ki Hajar Shikshaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1973
Total Pages279
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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