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________________ १०२ जैनधर्म की हजार शिक्षाएँ १० णो पाण भोयणस्स अतिमत्तं आहारए सया भवई । - स्थानांग & ११. १२. " ब्रह्मचारी को कभी भी अधिक मात्रा में भोजन नहीं करना चाहिए । नाइमत्तपाणभोयणभोई से निग्गंथे । - आचारांग २।३।१५।४ जो आवश्यकता से अधिक भोजन नही करता है, वही ब्रह्मचर्य का साधक सच्चा निर्ग्रन्थ है । हृन्नाभिपद्मसंकोच-श्चण्ड रोचिरपायतः 1 अतो नक्तं न भोक्तव्यं सूक्ष्मजीवादनादपि । — योगशास्त्र ३।६० आयुर्वेद का अभिमत है कि शरीर में दो कमल होते हैं -हृदयजाने पर ये दोनों कमल 1 कमल और नाभिकमल । सूर्यास्त हो संकुचित हो जाते हैं । अतः रात्रि भोजन निषिद्ध है । इस निषेध का दूसरा कारण यह भी है कि रात्रि में पर्याप्त प्रकाश न होने से छोटे-छोटे जीव भी खाने में आ जाते हैं। ( प्रकाश होने पर अन्य जीव भी भोजन में गिर जाते है) इसलिए रात्रि में भोजन नहीं करना चाहिए ।
SR No.010229
Book TitleJain Dharm ki Hajar Shikshaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1973
Total Pages279
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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