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________________ २० संतोष संतोसिणो नो पकरेंति पावं ।। -सूत्रकृतांग ॥१२॥१५ संतोषी साधक कभी कोई पाप नहीं करते । संतोसपाहन्नरए स पुज्जो। -दशवकालिक ९३५ जो संतोष के पथ में रमता है, वही पूज्य है। ३. सद्दे अतित्ते य परिग्गहम्मि, सत्तोवसत्तोन उवेइ तुर्दिछ। --उत्तराध्ययन ३२१४२ शब्द आदि विषयों में अतृप्त और परिग्रह में आसक्त रहनेवाला आत्मा कभी संतोष को प्राप्त नहीं होता। ४. असंतुट्ठाणं इह परत्थ य भयं भवति । आचारांगचूणि १।२।२ असंतुष्ट व्यक्ति को यहां, वहाँ सर्वत्र भय रहता है। ५. असन्तोषवतः सौख्यं न शक्रस्य न चक्रिणः । -योगशास्त्र २।११६ असंतोषी इन्द्र को व चक्रवर्ती को भी सुख नहीं मिलता। ७४
SR No.010229
Book TitleJain Dharm ki Hajar Shikshaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1973
Total Pages279
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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