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________________ ८. तेजोमय नक्षत्र आचार्य स्थूलभद्र काम-विजेता श्रमण-शिरोमणि साधक आचार्य स्थूलभद्र का नाम श्वेताम्बर परम्परा मे अत्यन्त गौरव के साथ स्मरण किया जाता है। इस परम्परा का प्रसिद्ध श्लोक है मगल भगवान वीरो मगल गौतम प्रभु । मगलस्थूल भद्राधा जैनधर्मोस्तु मगल ॥ मगलमय भगवान् वीर प्रभु एव गणधर गौतम के बाद आचार्य स्थूलभद्र के नाम का स्मरण उनके विशिष्ट व्यक्तित्व एव तेजोमय जीवन का सूचक है। आचार्य स्थूलभद्र का जन्म गौतम गोत्रीय ब्राह्मण परिवार मे वी०नि० ११६ (वि० पू० ३५४) मे हुआ। उनके पिता का नाम शकटाल और माता का नाम लक्ष्मी था। धर्मपरायणा, सदाचारसम्पन्ना, शीलालकारभूपिता लक्ष्मी लक्ष्मी ही थी। वह नारी-रत्न थी। शकटाल नवम नन्द साम्राज्य मे उच्चतम अमात्य पद पर प्रतिष्ठित था। उसकी मत्रणा से सारे राज्य का सचालन होता था। प्रजा उसके कार्यकौशल पर प्रसन्न थी। नन्द साम्राज्य की कीर्तिलता मत्री के बुद्धिबल पर दिदिगन्त मे प्रसार पा रही थी एव लक्ष्मी की अपार कृपा उस राज्य पर वरस रही थी। महामनी शकटाल के नौ सन्ताने थी। स्थूलभद्र एव श्रीयक दो पुत्र थे—यक्षा, यक्षदत्ता, भूता, भूतदिन्ना, सेना, रेणा, वेणा-ये सात पुत्रिया थी। मेधावी पिता की सन्तान भी बुद्धिमती होती है। शकटाल की सब सन्ताने प्रतिभासम्पन्न थी। सातो पुत्रियो की तीव्रतम स्मरणशक्ति आश्चर्यजनक थी। प्रथम पुत्री एक बार मे, दूसरी पुत्री दो बार मे, क्रमश सातवी पुत्री सात बार मे अश्रुत श्लोक को सुनकर कण्ठस्थ कर लेती और ज्यो का त्यो तत्काल उसका परावर्तन कर देती। शकटाल का कनिष्ठ पुत्र श्रीयक भक्तिनिष्ठ था एव सम्राट् नन्द के लिए गोशीर्ष चन्दन की तरह आनन्ददायी था। स्थूलभद्र शकटाल का अत्यन्त मेधासम्पन्न पुत्र था। उसे कामकला का
SR No.010228
Book TitleJain Dharm ke Prabhavak Acharya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSanghmitrashreeji
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1979
Total Pages455
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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