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________________ आचार्यों के काल का सक्षिप्त सिंहावलोकन २७ अध्यात्म योगियो की धारा भी गतिशील वनी । यह धारा आनन्दघन जी से प्रारभ हुई। आचार्य बुद्धिसागर इसी यौगिक धारा के सन्त थे। दिगम्बर परम्परा के प्रभावी आचार्य शान्तिसागर जी, देशभूषण जी , मन्दिर मार्गी परम्परा के आचार्य विजयानन्द सूरिजी, विजय राजेन्द्र जी, कृपाचन्द्र सूरि जी, विजय वल्लभ सूरि जी, मागरानन्द जी, स्थानकवासी परम्परा के आचार्य रघुनाथ जी, जयमल्ल जी, अमोलक ऋषिजी, आत्माराम जी, जवाहरलाल जी, आनन्द ऋपि जी, तेरापन्थ परम्परा के आचार्य भिक्षु, जयाचार्य, मघवागणी, करुणानिधान कालगणी जी आदि इस युग के विशेप उल्लेखनीय आचार्य है। इन की धर्म-प्रचार प्रवृत्ति, साहित्य-साधना, महान यात्राए तथा विविध प्रकार की अन्य कार्यपद्धतिया जैन धर्म की प्रभावना मे विशेष सहायक सिद्ध हुई है। विदेशो तक धर्मसदेश पहुचाने का श्रेय भी नवीन युग के आचार्यों को है। ___ नवीन युग की विशाल कडी तेरापन्थ के वर्तमान अनुशास्ता अणुव्रत प्रवर्तक युग-प्रधान आचार्य श्री 'तुलसी' है । उन्होने अणुव्रत के द्वारा जैन धर्म को व्यापक भूमिका पर युग के सामने प्रस्तुत किया है एव धर्म के सार्वजनीन, सार्वकालिक, शाश्वत सिद्धातो को व्यावहारिक रूप प्रदान किया है। नैतिक आचार सहिता को एव विश्ववन्धुता के सिद्धान्त को प्रस्तुत करता हुआ यह आन्दोलन अभूतपूर्व लोकप्रियता प्राप्त कर रहा है। शिक्षा, शोध, सेवा, साधना की सगमस्थली जैन विश्व भारती के अध्यात्म पक्ष को उजागर कर आचार्य श्री तुलसी ने जनमानस मे जैन सस्कारो को दृढता प्रदान की है। जैन एकता की दिशा मे उनके द्वारा प्रदत्त पचसूत्री कार्यक्रम तेरापन्थ धर्म सघ की उदारता का परिपोपक है। ___ धर्म सम्प्रदायो के आधारभूत धर्मग्रन्थो मे सशोधन की वात प्राय मान्य नही रही है। जैनागमो के लिए भी यही स्थिति थी। आगमवाणी के एक भी वाक्य मे और वाक्य के एक भी वर्ण, मात्रा में परिवर्तन करना दोषपूर्ण माना गया है। जैन दर्शन की इस दृढ मान्यता के आधार पर आगमो मे लिपिदोष के कारण हुई भूलो का सुधार पूर्वाग्रहग्रसित धार्मिको द्वारा स्वीकृत नही था। इससे आगम ग्रन्थो मे परस्पर पाठभेद और अर्थभेद भी उत्पन्न हो गए थे। आगमिक पद्यो के सम्यक् अर्थवोध हेतु आगम-सपादन का कार्य आवश्यक प्रतीत होने लगा था। ____ आगम-सपादन का यह महनीय कार्य वाचना-प्रमुख आचार्य श्री तुलसी के निर्देशन में आरम्भ हुआ । उद्भट विद्वान्, गम्भीर दार्शनिक मुनि श्री नथमल जी (वर्तमान मे युवाचार्य श्री महाप्रज्ञ जी) इस कार्य का सम्यक् सचालन कर रहे हैं। बीसो साधु-माध्विया इस कार्य मे सलग्न है। ऊर्जास्रोत, युग-प्रधान आचार्य
SR No.010228
Book TitleJain Dharm ke Prabhavak Acharya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSanghmitrashreeji
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1979
Total Pages455
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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