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________________ २६. निर्भीक नायक आचार्य देशभूषण दिगम्बर परम्परा के आचार्य-रत्न देशभूषण जी कन्नड, मराठी, सस्कृत, प्राकृत, अपभ्रश, हिन्दी, गुजराती आदि कई भाषाओ के विद्वान् है। सरल भाषा मै प्रस्तुन उनके हृदयग्राही प्रवचन प्रभावक होते है। उनमे युवक का-सा उत्साह है और साहित्य-सृजन की अदम्य उत्कठा है। __ हिन्दी, सस्कृत, गुजराती, कन्नड, मराठी और अंग्रेजी मे उनकी लगभग चालीस रचनाए प्रकाशित होकर जनता के हाथो मे पहुच गई है। माहित्य-सृजन की दिशा में उनकी सबसे महत्त्वपूर्ण देन कन्नड भाषा के गौरवमय साहित्य को हिन्दी में अनूदित करना है। कन्नड भाषा दक्षिण की समृद्ध भापा है। उसमे जैन का विशाल साहित्य उपलब्ध है। पर दाक्षिणात्य भापाओ से अनभिज्ञ पाठक अपनी इस बहुमूल्य निधि का उपयोग करने से सर्वथा वचित रह जाते हैं। आचार्य देशभूपण जी ने कई कन्नड ग्रन्यो का हिन्दी में अनुवाद कर कन्नड साहित्य से हिन्दी पाठको को लाभान्वित किया है। वे हिन्दी को समृद्ध बनाने के साथ-साथ जैन वाड्मय की उल्लेखनीय सेवा कर रहे हैं। जैन साहित्य के प्राचीन ग्रन्थो का संग्रह और उनका सूक्ष्म अध्ययन तथा तत्प्रकार की अन्य अनेक प्रवृत्तियो का सचालन उनकी हार्दिक लगन का ही 'परिणाम है। आचार्य देशभूपण जी के कई प्रवचन युगप्रधान आचार्य श्री तुलसी जी के साथ भी हुए हैं। एक मच पर जैन के उभय सम्प्रदायो के आचार्यों का मिलन धार्मिक “एकता का सुन्दर चरण है। ऐसे सामूहिक आयोजनो पर देशभूषण जी को सुनने का अवसर मिला है | उनके उपदेश सरल और सुवोध होते है। धर्म-प्रचारार्थ आचार्य जी ने भारत भूमि पर प्रलम्ब यात्राए की है। वर्तमान मे दिगम्वर परम्परा के प्रभावक आचार्यों की शृखला मे उनका अपना स्थान है।
SR No.010228
Book TitleJain Dharm ke Prabhavak Acharya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSanghmitrashreeji
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1979
Total Pages455
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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