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________________ १६. समता-सागर आचार्य सागरानन्द आचार्य सागरानन्द सूरिजी तपागच्छ के आगमोद्धारक आचार्य थे । वे कप्पडगज के श्रेष्ठी मगनलाल गाधी के सुपुत्र और मणिलाल गाधी के लघु नाता थे। वी०नि० २४०१ (वि० १९३१) में उनका जन्म और सत्तरह वर्ष की आयु मे जवेरसागर जी मुनि के पास उनकी दीक्षा हुई। दीक्षा नाम आनन्दसागर था। ज्ञान के क्षेत्र मे उत्तरोत्तर उत्कर्ष प्राप्त कर विद्यासागर बने। उनको वी०नि० २४३० (वि० १९६०) मे पन्यास पद तथा गणीपद और वी०नि० २४४४ (वि० १६७४) मे विमलकमल सूरि द्वारा आचार्य पद से अलकृत किया गया। सूरत मे उनके नाम पर 'आनन्द पुस्तकालय' अध्यात्म साहित्य-प्रधान सुविशाल पुस्तकालय है। ___ आगमोद्वार के लक्ष्य से उन्होने उदयपुर, सूरत आदि शहरो मे लगभग पन्द्रह समितियो की स्थापना की। आचार्य सागरानन्द की इस प्रवृत्तिका जनता मे अच्छा सम्मान वढा और उन्हे आगमोद्धारक उपाधि से भूषित किया गया। उन्होने अपने जीवन मे अनेक सत्प्रयलो से जैन शासन की श्री वृद्धि की।
SR No.010228
Book TitleJain Dharm ke Prabhavak Acharya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSanghmitrashreeji
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1979
Total Pages455
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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