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________________ ८ प्रबल प्रचारक आचार्य रघुनाथ स्थानकवासी सम्प्रदाय के प्रभावी आचार्य रघुनाथ जी आचार्य भूधर जी के शिष्य थे। उनका जन्म वी० नि० २२३६ (वि० १७६६) माध के शुक्ल पक्ष में हुआ। उनके पिता का नाम नथमलजी था। वे अपने मित्र की मृत्यु के विरह से व्यथित हो चामुण्ड देवी के मन्दिर मे शान्ति प्राप्त करने को जा रहे थे। मार्ग में श्री भूधर जी का योग मिला। तीन दिन तक उनके साथ चर्चा की। चर्चा का प्रतिफल वोधप्राप्ति के रूप में प्रकट हुआ। रघुनाथ जी ने साधु-जीवन स्वीकार करने का निश्चय किया। रत्नवती कन्या के साथ उनका सम्बन्ध किया हुआ था। उस सम्बन्ध को छोडकर रघुनाथ जी वी० नि २२५७ (वि० १७८७) ज्येष्ठ कृष्णा बुधवार को आचार्य भूधर जी के पास दीक्षित हुए। कुछ ही समय के बाद उनका नाम प्रभावक आचार्यों की पक्ति में गिना जाने लगा। उनके धर्म-प्रचार के प्रमुख क्षेत्र जालौर, पाली, ममदडी, सादडी, मेडता आदि ७०० गाव थे। आचार्य रघुनाथ जी के हाथ से ५२५ दीक्षाए हुई। उनके गुरुमाई श्रपण श्री जेनमिहनी, जयमल जी, कुशल जी आदि ६ श्रमण ये। उम समय यति वर्ग का अत्यधिक प्रभाव जनता पर छाया हुआ था। उनके साथ आचार्य रघुनाथ जी के कई शास्त्रार्थ हुए । उनको अपने धर्म-प्रचार-कार्य में अनेक कप्टो को सहन करना पडा। विरोधी पक्ष के द्वारा उन्हे भोजन मे जहर भी मिला था पर उन्होने ममता से विद्रोह को सहन किया । टोडरमल जी, नगराज जी आदि उनके प्रमुख विद्वान् शिष्य थे। जीवन के सध्याकाल में आचार्य रघुनाथ जी पाली में थे। उनको १७ दिन का अनशन आया। वे ८० वर्ष की अवस्था मे वी०नि० २३१६ (वि० स० १८४६) माघ शुक्ला ११ के दिन म्बर्ग को प्राप्त हुए।
SR No.010228
Book TitleJain Dharm ke Prabhavak Acharya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSanghmitrashreeji
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1979
Total Pages455
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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