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________________ २३. स्वस्थ परम्परा - संपोषक आचार्य सोमदेव दिगम्बर परम्परा के विद्वान् आचार्य सोमदेव आचार्य यशोदेव के प्रशिष्य एव आचार्य नेमिदेव के शिष्य थे। दिगम्बर परम्परा के चार सघो मे वे देवसघ के थे । उनके लघु भ्राता का नाम महेन्द्र देव था । आचार्य सोमदेव की मनीषा विविध विषयो मे विशेषज्ञता प्राप्त थी । सस्कृत मापा के वे अधिकारी विद्वान् एव गद्य-पद्य दोनो प्रकार की विधा के अपूर्व रचनाकार थे । वर्तमान मे सोमदेव के तीन ग्रन्थ उपलब्ध हैं -- नीतिवाक्यामृत, अध्यात्मतरगिणी, यशस्तिलक । नीतिवाक्यामृत की शैली सूत्रात्मक है। इसमे राजनीति विषय का सागोपाग विवेचन हुआ है । यह कृति बत्तीस अध्यायों में विभक्त है। इसकी रचना यशस्तिलक के बाद हुई है । अध्यात्म तर गिणी मात्र चालीस पद्यो का एक प्रकरण है । यशस्तिलक आचार्य सोमदेव की अत्यन्त गभीर कृति है । छह सहस्र श्लोक परिमाण यह ग्रथ एक महान् धार्मिक आख्यान है । इसमे यशोधर का सम्पूर्ण कथाचित्र अत्यन्त सुन्दर ढंग से प्रस्तुत हुआ है । आचार्य सोमदेव के प्रखर पाडित्य 'एव सूक्ष्म अन्वेषणात्मक दृष्टि का स्पष्ट दर्शन इस कृति से पाया जा सकता है । निर्विवाद रूप से यह कृति जैन-जैनेतर ग्रन्थो का सारभूत ग्रन्थ है । इसका शब्दगौरव कवि माघ के काव्यो की स्मृति कराता है । यशस्तिलक कृति मे इन्द्र, चन्द्र, जैनेन्द्र, आपिशल और पाणिनीय व्याकरण की चर्चा एव महाकवि कालिदास, भवभूति, गुणाढ्य, वाण, मयूर, व्यास आदि अपने पूर्वज विद्वानो का उल्लेख आचार्य सोमदेव के चतुर्मुखी ज्ञान का प्रतिविम्ब है । विषय-वस्तु एव रचना शैली की दृष्टि से भी यशस्तिलक काव्य उच्चकोटि का है । इसका परायण करते समय कवि कालिदास, भवभूति, भारवि तीनो को एकसाथ पढा जा सकता है । यशस्तिलक के आठ आश्वास हैं । अन्तिम तीन आश्वास उपासकाध्ययन नाम विश्रुत है | अगसाहित्य मे सुप्रसिद्ध आगम 'उपासकदशा' से प्रभावित होकर
SR No.010228
Book TitleJain Dharm ke Prabhavak Acharya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSanghmitrashreeji
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1979
Total Pages455
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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