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________________ १८. अध्यात्मनाद आचार्य अमतचन्द्र तत्त्वार्थमार-मास्याति 'तत्यारं मनमोहदयनाही पद्य रचना है। 'पुरुषार्थ सिनगुपाय' उनको श्रावकाचार विपयफ सर्वथा स्वतन एव मौलिक कृति है। आचार्य अगृतचन्दको जनागम मा अगाध शान था। विद्वान् होने के साथसाथ चे अध्यात्म को मूर्त रूप भी थे। उनकी हर एक रचना में अध्यात्म का निझर छलकता और हर एक वामय अध्यात्म रस में ससिक्त होकर रचना के साथ सपुटित होता। गम्भीर आध्यत्मिकता की अनुभूति कराता हुआ उनका साहित्य उच्चतम काव्याक्ति का परिचायक है। समन्दर्भ निश्चय और व्यवहार को निस्पण करने की उनकी क्षमता उनके माहित्य-पाठा को आत्मविभोर किए बिना नहीं रहती। महामनीपी आचार्य अमृतचन्द्र को अपनी प्रखर प्रतिभा का जरा भी गर्व
SR No.010228
Book TitleJain Dharm ke Prabhavak Acharya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSanghmitrashreeji
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1979
Total Pages455
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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