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________________ १४. उदात्त चिन्तक आचार्य उद्योतन (दाक्षिण्यांक) कुवलयमाला के रचनाकार आचार्य उद्योत्तन दाक्षिण्याक के नाम से भी प्रसिद्ध . है । आचार्य उद्योतन की पूर्व परपरा मे आचार्य हरिगुप्त थे। वे सुप्रसिद्ध तोरमाण राजा के गुरु थे। हरिगुप्त के शिष्य देवगुप्त और उनके शिष्य यक्षदत्त थे। यक्षदत्त के कई शिष्य थे। उनमे एक नाम तत्त्वाचार्य का भी था। ये तत्त्वाचार्य ही कुवलयमाला के कर्ता उद्योतन आचार्य के गुरु थे। __आचार्य उद्योतन ने वीरभद्र सूरि से सैद्धान्तिक ज्ञान की शिक्षा पाई एव विद्वान् आचार्य हरिभद्र से तर्कशास्त्र पढा। कुवलयमाला उनकी चम्पू शैली मे निर्मित प्राकृत कथा है । गद्य-पद्य मिश्रित महाराष्ट्री प्राकृत की यह प्रसादपूर्ण रचना है । पंशाची, अपभ्रश एव सस्कृत के प्रयोगो ने इस कथा को रोचकता प्रदान की है। विविध अलकारो की सयोजना से मडित, प्रहेलिका एव सुभाषितो की सामग्री से पूर्ण, मार्मिक प्रश्नोत्तरो से सुसज्जित एव नाना प्रकार की वणिक् बोलियो के माध्यम से मधुर रस का पान कराती हुई यह कथा पाठक के मन को मुग्ध कर देने वाली है। वाण की कादम्बरी, त्रिविक्रम की दमयती कथा और प्रकाड विद्वान् आचार्य हरिभद्र की 'समराइच्चकहा' का अनुगमन करती हुई ग्रथ की रचना शैली अत्यन्त प्रभावोत्पादक है । अनेक देशी शब्दो के प्रयोग भी इस कृति मे है। कृति का आद्योपात अध्ययन आचार्य उद्योतन के विशाल ज्ञान की सूचना देता है । क्रोध, मान, माया, लोभ, मोह आदि के दुखद परिणाम बताने के लिए लेखक ने लघु किन्तु सरस कथाओ का व्यवहार कर इस कृति मे मधुबिंदु रस जैसा आकर्षण भर दिया है। ___ जवालिपुर (जालोर मे) इस ग्रथ को लिखकर लेखक ने सम्पन्न किया था। यह स्थान जोधपुर के दक्षिण मे है । आचार्य उद्योतन के उदात्त चितन का प्रतिबिंव इस कृति मे प्राप्त होता है। इस ग्रथ का रचना-काल वी० नि० १३०६ (वि० स०८३६) है। इस प्रमाण के आधार पर उदात्त चिंतक आचार्य उद्योतन का समय विक्रम की नौवी शताब्दी एव वीर निर्वाण की तेरहवी शताब्दी सिद्ध होता है। बडगच्छ के सस्थापक उद्योतन सूरि से प्रस्तुत उद्योतन सूरि सौ साल से भी अधिक पूर्व के है।
SR No.010228
Book TitleJain Dharm ke Prabhavak Acharya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSanghmitrashreeji
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1979
Total Pages455
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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