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________________ २४. कीर्ति-निकुञ्ज आचार्य कुन्दकुन्द जैन साहित्य के अभ्युदय मे दाक्षिणात्य प्रतिभाओ का महान् योगदान रहा है। उनमे आचार्य कुन्दकुन्द को सर्वतोऽग्न स्थान प्राप्त है। वे कर्णाटक के कोडकुड के निवासी थे। उनके पिता का नाम करमडू और माता का नाम श्रीमती था। बोधप्राभूत के अनुसार वे श्रुतकेवली भद्रवाहु के शिष्य थे, पर यथार्थ मे उनकी गुरुपरपरा प्राप्त नहीं है । भद्रवाहु उनके साक्षात् (अनतर) गुरु नहीं थे। यह आज कई प्रमाणो से सिद्ध हो चुका है। ___ कन्नडी भाषा मे आचार्य कुन्दकुन्द कोडकुड नाम से विख्यात है। 'कुन्दकुन्द' कोडकुड का ही सस्कृत रूप प्रतीत होता है। पद्मनन्दी, वनग्रीव, गृध्रपिच्छ और एलाचार्य नाम भी आचार्य कुन्दकुन्द के थे। उनका सबसे पहला नाम पद्मनन्दी था। सतत अध्ययन मे झुकी हुई ग्रीवा रहने के कारण वक्रग्रीव और एक समय गृध्रपिच्छी धारण करने से गृध्रपिच्छ कहलाए। ____ आचार्य कुन्दकुन्द अध्यात्म के प्रमुख व्याख्याकार थे । उनकी आत्मानुभतिपरक वाणी ने अध्यात्म के नए क्षितिज का उद्घाटन किया और आगमिक तत्त्वा को तर्कसुसगत परिधान दिया। आचार्य कुन्दकुन्द की आगमिक परिभाषाए निश्चयनय पर केंद्रित है और उनकी दृष्टि मे भावशून्य क्रियाए सर्वथा निष्फल थी। इन्ही विचारो की अभिव्यक्ति में उनका एक श्लोक है भावरहिओ ण सिज्जई, जइवि तव चरई कोडि कोडियो। __ जम्मतराइ वहुसो लवियहत्थो गलियवत्थो। जीव दोनो हाथ लटकाकर और वस्त्र त्याग कर करोड जन्म तक निरन्तर तपश्चया करता रहे पर भावशून्यावस्था मे उसे कभी सिद्धि प्राप्त नहीं होती। आचार्य कुन्दकुन्द चौरासी प्राभूतो (पाहुड) के रचनाकार थे, पर वतमान उन चौरासी प्राभूतो के पूरे नाम भी उपलब्ध नहीं है। प्राभृत साहित्य मे दर्शन प्राभूत (दसण-पाहुड), चरित्र प्राभृत (चरित्त-पाहुड), PT
SR No.010228
Book TitleJain Dharm ke Prabhavak Acharya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSanghmitrashreeji
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1979
Total Pages455
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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