SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 171
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ विलक्षण वाग्मी आचार्य वन स्वामी १५१ साधना को जैन धम की प्रभावना का निमित्त मान देव महोत्सव के लिए आए। देवागमन देखकर वजस्वामी ने श्रमण मप को सूचित किया-अत्यन्त तीन परिणामो से मीग्ण तार-लहरी को सहन करता हुआ लघुवय मुनि का अनशन पूर्ण हो चुका है। लघु शिग्य से पहले ही पाच नौ श्रमणो सहित आर्य वच्च स्वामी शैल शिखर पर आरोहण कर चुने थे। परम वैराग्य को प्राप्त श्रमणो ने देवगुरु का स्मरण किया। पूर्ववृत दोषो यी मार्ग पत्र के पास नालोचना की। गिरिखड पर अधिष्ठित देवी से आमा नेकर ययाचिन स्थान पर आमन ग्रहण कर मेरु की माति अकम्प समाधिस्य बने। वेक्षण-भर के लिए विम्मित हुए। उनके भावो को श्रेणी चढी। चिन्तन चला-बाल मुसीने सल्प गमय में ही परमार्थ को पा लिया है। चिरकालिक नयम प्राण्या पो पालन करने वाले हम भी गया अपने लक्ष्य तक नहीं पहुच पाएगे ? उत्तरोत्तर उनकी भाव-तरग तीनगामी वनती रही। रात्रि के समय प्रत्यनीक देवी का उपनग हुना। उन ग्यान को अप्रतीतिकर जानकर ममघ वज्र स्वामी अन्य गिरिग पर गए। वहा पर दृट मकल्प के गाथ अपना आमन स्थिर किया। मृत्यु और जीवन की नाकाक्षा मे रहित उच्चतम भावो में लीन श्रमण प्राणी का उत्सर्ग कर वग को प्राप्त हुए। __अनगन पो नियति मै वच म्यागी का स्वर्गवास वी०नि० ५८४ (वि० म० ११४) मे हुना। पाच मो श्रमणो महित आयं वय की गमाधिस्थली गिरि मडल के चारो ओर रयान्ढ इन्द्र ने रथ को घुमाकर प्रदक्षिणा दी, अत उस पवत का नाम रथावर्त पर्वन हो गरा था। ____ आय वन स्वामी के तीन प्रमुख शिष्य थे-वनसेन, पद्म, आयरथ। वज्रमेन उनमे ज्येष्ठये। दायित्व को वहन करने में समर्थ एव गीतार्थ जाचार्य सिंहगिरि के कुशल पट्टधर आर्य वज्र स्वामी आठ वर्ष तक गृहस्थ जीवन मे रहे। कुल १८ वर्ष की अपनी आयु में ८० वप तक मयम पर्याय का उन्होंने पालन किया एव ३६ वर्प तक युगप्रधान पद को अनत किया। ____ आर्य वज्र स्वामी जैन शामन के सवल आधार-स्तम्भ थे। उनके स्वर्गगमन के साथ ही दमवें पूर्व की जान-मम्पदा एव चतुर्य अर्धनाराच नामक महनन की महान् क्षति जैन शामन मे हुई।" कालिक मूत्रो का अपृथक्त्व व्याख्यान पद्धति (प्रत्येक मूत्र की चरण करुणानुयोग आदि चारो अनुयोगो पर विभागण विवेचन) मी नार्य वज्र स्वामी के बाद अवरुद्ध हो गई।
SR No.010228
Book TitleJain Dharm ke Prabhavak Acharya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSanghmitrashreeji
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1979
Total Pages455
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy