SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 137
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ क्रान्ति-चरण आचार्य कालक (द्वितीय) ११७ गर्दभिल्ल को दृढ स्वरो मे निवेदन किया, पर मिथ्या मोहारूढ, मूढमति राजा ने उनकी प्रार्थना पर कोई ध्यान नहीं दिया। ___ आचार्य कालक मे क्षान तेज उद्दीप्त हो उठा, "तम्हा सइ सामत्थे आणा भट्टम्मि नो खलु उवेहा" सामर्थ्य होने पर आज्ञा भ्रष्ट की कभी उपेक्षा नही करनी चाहिए। "जिन प्रवचन के अहित माधक, अवर्णवादी को पूर्ण शक्ति लगाकर रोक देना चाहिए।" यह एक ही वात आचार्य कालक के मस्तिष्क मे चक्कर काटने लगी। उन्होने गर्दभिल्ल को राजच्युत करने की घोर प्रतिज्ञा की। आचार्य कालक का स्पष्ट निर्णय था-"मर्यादाभ्रष्ट गर्दभिल्ल को राजच्युत न कर दू तो संघ के प्रत्यनीक, प्रवचन-प्रघातक, सयम-विनाशक व्यक्तियो जैसी गति मुझे प्राप्त हो। गर्दभिल्ल शक्तिशाली शासक था। उससे लोहा लेना आसान बात नहीं थी। आचार्य कालक इस बात को बहुत अच्छी तरह जानते थे। अपनी घोर प्रतिज्ञा का भेद कही खुल न जाए, इस बात को गम्भीरता से लेते हुए आचार्य कालक शहर मे सज्ञाशून्य की भाति घूमने लगे। नगर की गलियो, चौराहो राजपथो पर असबद्ध अपलाप करते हुए वे कहते-"गर्दभिल्ल नरेन्द्र है तो क्या ? देश समृद्ध है तो क्या? उसका अन्त पुर रम्य है तो क्या ? नगरी सुर'क्षित है तो क्या ? नागरिक जन सुन्दर परिधान पहने हुए है तो क्या? मै भिक्षार्थ भटकता हूँ तो क्या ? शून्य देवल मे निवास करता हू तो क्या ?" ____ आचार्य कालक के इस अपलाप ने सवको भ्रान्ति मे डाल दिया। राजा गर्द'भिल्ल को लगा-"आचार्य कालक भगिनी के व्यामोह मे विक्षिप्त हो चुके है।" अपने करणीय हेतु निर्विघ्न भूमिका का निर्माण कर राजनीति-दक्ष आचार्य कालक कतिपय समय के बाद एकाकी वहा से निकल पडे । पश्चिम दिशा की ओर बढ़ते हुए वे सिन्धु तट पर पहुचे। वहा पर ६६ शाहो (शक सामन्तो) को विद्याबल से प्रभावित कर उनके साथ आचार्य कालक ने घनिष्ठ मित्रता स्थापित कर ली। शक सामन्तो पर एक मुख्य शाह (राजा) भी था। एक दिन शक सामन्त राजभय से घिर गए । उस सकट से बचाने के लिए शक सामन्तो को नौका पर चढाकर आचार्य कालक सिंधु नदी को पार करते हुए सौराष्ट्र पहुचे।' निशीथचूणि मे शको का 'पारस कुल' मे होने का उल्लेख है। सम्भवत पारस कुल फारस खाडी के निकट का कोई प्रदेश था। विद्वानो की दृष्टि से वर्तमान मे यह ईरान का स्थान है। पारस कुल शको का निवासस्थान होने से शक कुल के नाम से भी प्रसिद्ध रहा है। कई का अभिमत है-आचार्य कालक सिन्धु प्रान्त से शक सामन्तो को लेकर आए थे। ___ भारत से सुदूरवर्ती क्षेत्र ईरान से इतने विशाल दल को प्रभावित कर ले आना उस समय की कठिन परिस्थितियो मे एव यातायात के साधनो के उचित
SR No.010228
Book TitleJain Dharm ke Prabhavak Acharya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSanghmitrashreeji
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1979
Total Pages455
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy