SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 134
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १७-१६. मोक्ष-वीथि-पथिक आचार्य समुद्र, मंगू, भद्रगुप्त हिमवन्त स्थविरावली और नन्दी स्थविरावली के अनुसार आचार्य पाडिल्य के उत्तराधिकारी समुद्र और समुद्र के उत्तराधिकारी आचार्य मगू थे। वालभी युग-प्रधान पट्टावली के अनुमार मगू रेवती मिन्न के उत्तराधिकारी थे। ____ नन्दी स्थविरावली मे आचार्य समुद्र और मगू की प्रशस्त शब्दो मे प्रशसा की गयी है। आचार्य समुद्र के गुणानुवाद का श्लोक इस प्रकार है तिसमुद्दरवायकित्ति दीवसमुद्देसु गहियपेयाल । वदे अज्जसमुद्द अक्खुमियसमुद्दगभीर ॥२६॥ प्रस्तुत श्लोक के अनुसार आचार्य समुद्र की कीति आसमुद्रान्त तक विस्तृत थी और वे प्रतिकूल परिस्थिति में भी अक्षुभित ममुद्र की भाति गमीर थे। मगू के लिए नन्दी स्थविरावली का श्लोक है भणग करग-झरग पभावग णाणदसणगुणाण। वदामि अज्जमङ्ग सुयुसागरपारग धीर ।।२७।। प्रस्तुत श्लोक की व्याख्या चणिकार ने इस प्रकार से की है-"मालियपुरमुत्तत्थ भणतीति भणको। चरण-फरणप्रिया करोतीति कारक। मुत्तत्गे ग मणमा झायतो ज्झरको। परप्पवादिजयेण पवयणपभावको । नाणदगणगण गुणाण च पभावको आधारो य।" । भाचार्य मगू आगम-अध्येता, मानार-कुगल, सूत्रार्थ गा मानगिम चिनन फग्ने वाने, परवादी विजेता, प्रवनन-प्रभावक, शान, दशन, गुणसम्पन्न, श्रा गागर-पारगामी, धुतिधर आचार्य थे। ___ आचार्य भद्रगुप्त दग पूर्वधर थे। ज्योतिष विद्या के प्राण्ट मिान में। भारत ने आचार्य भद्रगुप्त मी अनशन पी मिनि में विशेष उगागा की भी। मानायं वनम्वामी ने भी दम पूर्यो पाभाग मानाय भागृत में प्रगरिया आना पाश्मिय उनधि मागहराने में माता गट In
SR No.010228
Book TitleJain Dharm ke Prabhavak Acharya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSanghmitrashreeji
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1979
Total Pages455
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy