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________________ १५-१६. सन्त श्रेष्ठ आचार्य श्याम और षांडिल्य जैन परम्परा मे कालक नाम के कई आचार्य हुए हैं । उनमे प्रथम कालकाचार्य श्यामाचार्य के नाम से प्रसिद्धि प्राप्त हैं । नन्दी स्थविरावली के उल्लेखानुसार हारित गोली आर्य वलिस्सह के शिष्य आर्य स्वाति थे । आचार्य स्वाति भी हारित गोतीय परिवार के थे । आचार्य श्याम आर्य स्वाति के शिष्य थे । ' श्यामाचार्य अपने युग के महा प्रभावक आचार्य थे । उनका जन्म वी० नि० २८० (वि० पू० १६० ) मे हुआ । ससार से विरक्त होकर वी०नि० ३०० (वि० पू० १७० ) मे उन्होने श्रमण दीक्षा स्वीकार की । दीक्षा ग्रहण के समय उनकी अवस्था २० वर्ष की थी। महती योग्यता के आधार पर वी० नि० ३३५ ( वि० पू० १३५ ) मे उन्हे युगप्रधानाचार्य के पद पर विभूषित किया गया था । 1 आचार्य श्याम द्रव्यानुयोग के विशेष व्याख्याकार थे । प्रज्ञापना जैसे विशालकाय सूत्र की रचना उनके विशद वैदुष्य का परिणाम है। जैनागम साहित्य मे प्रज्ञापना उपागागम है एव चार अनुयोग में वह द्रव्यानुयोग है । इसके ३६ प्रकरण हैं | जीवादि विभिन्न तात्त्विक विषयो की सामग्री इस सूत्र मे उपलब्ध है । इस ग्रन्थ को आगम रूप मे स्वीकार कर लेना आचार्य श्याम की निर्मल नीति पर समग्र श्रमण सघ के हार्दिक विश्वास का द्योतक है। नाम उनका श्याम था, पर विशुद्धतम चरित्र की आराधना से वे अत्यन्त उज्ज्वल पर्याय के धनी थे । 1 आचार्य श्याम की अधिक प्रसिद्धि निगोद व्याख्याता के रूप मे है । एक वार सीमन्धर स्वामी से महाविदेह मे सूक्ष्म निगोद की विशिष्ट व्याख्या सौधर्मेन्द्र ने सुनी और प्रश्न किया- "भगवन् । भरत क्षेत्र मे भी निगोद-सम्बन्धी इस प्रकार की व्याख्या करने वाले कोई मुनि, श्रमण, उपाध्याय और आचार्य है 5 धर्मेन्द्र के समाधान मे सीमन्धर स्वामी ने आचार्य श्याम का नाम प्रस्तुत किया । सौधर्मेन्द्र वृद्ध ब्राह्मण के रूप मे आचार्य श्याम के पास आया । उनके ज्ञानवल का परीक्षण करने के लिए उसने अपना हाथ उनके सामने किया । हस्त
SR No.010228
Book TitleJain Dharm ke Prabhavak Acharya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSanghmitrashreeji
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1979
Total Pages455
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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