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________________ ६० जैन धर्म के प्रभावक आचार्य अव्यक्तवादी निह्नव का समय भी यही है । स्थूलभद्र के जीवन का लगभग एक शतक आरोह और अवरोह से भरा ऐतिहासिक दृष्टि से शानदार पृष्ठ है। वैभारगिरि पर्वत पर पन्द्रह दिन के अनशन के साथ वी०नि० २१५ (वि०पू० २५५) मे उनका स्वर्गवास हुआ। आधार-स्थल १ पाडलिपुत्रपुरम्मि रन्नो, नदस्स विस्सुयजसस्स । निवरज्जकज्जसज्जो, सयडालो आसि मतिवरी ॥१॥ (उपदेशमाला, पन्नाक २३४), २ पुत्तो य थूलभद्दो, पढमो से बीयो तहा सिरियो। रुववईओ धूयाओ, सत्त जक्खा पमुक्खाओ ।।२।। जक्खा य जक्खदिन्ना, भूया तह भूयदिन्निया नाम । सेणा वेणा रेणा, ताओ एयाओ अणुकमसो ॥३॥ (उपदेशमाला, पन २३४) ३ इगदुगतिगाइ परिवाडिपायडताणमावडइ कमसो । सक्कय सिलीगगाहा, सयाइ मेहापहाणाण ॥४॥ (उपदेशमाला पत्न, २३४), ४ पुरेऽभूत्तन कोशेति वेश्या रूपधियोर्वशी। वशीकृतजगच्वेताश्चेतो भूजीवनौषधि ॥६॥ (परि० पर्व, सर्ग ८) ५ तेण भणिय भाया, जेट्टो मे थूलभद्दनामोत्ति । वारसम से वरिस, वेसाए गिहे वसतस्स ॥४॥ (उपदेशमाला, विशेप वृत्ति, पनाक २३६) ६ त्यक्त्वा सर्वमपि स्वार्थ राजार्थं कुर्वतामपि । उपद्रवन्ति पिशुना उद्घानामिव द्विका ॥४॥ (परि० पर्व, सर्ग ८) ७ स्थूलभद्रमथायान्तमभ्युत्थायानवीद् गुरु । दुष्करदुष्करकारिग्महात्मन् स्थागत तव ।।१३६॥ (परि०पर्व, सर्ग) मह बारसवारिसिओ, जाओ कूरो कयाइ दुक्कालो। सम्वो साहुसमूहो, तो गमो कत्थई कोई ॥२२॥ तदुवरमे सो पुण रवि, पाडिले पुत्ते समागमओ विहिया। सघेण सुयविसया चिंता कि कस्स अत्थित्ति ॥२३॥
SR No.010228
Book TitleJain Dharm ke Prabhavak Acharya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSanghmitrashreeji
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1979
Total Pages455
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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