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________________ ३२ जैन धर्म का प्राचीन इतिहास - भाग २ रहा था। जनता हाथी की भयंकरता से प्राकुलित हो रही थी। बड़े-बड़े योद्धा भी उसे वांधने का साहस नहीं कर सके। किन्तु जम्बूकुमार ने अचिन्त्य साहस और बल से उस पर सवार होकर उस उन्मत्त हाथी को क्षणमात्र में वश में कर लिया। अतएव जनता में जम्बूकुमार के साहस की प्रशंसा होने लगी। लोग कहने लगे-धन्य है कुमार का अदभत बल, जिसने देखते-देखते क्षणमात्र में भयानक हाथी को वश में कर लिया। यह सब उसके पुण्य का माहात्म्य है, इसलिये वह महापुरुषों द्वारा पूज्य है । पुण्य से ही सम्पदा, सुग्व सामग्री और विजय मिलती है। जम्बूकुमार ने केरल के युद्ध में जो वीरता दिखलाई वह अद्वितीय थी। रत्नशेखर मे युद्ध करते हुए जम्बूकुमार ने उसको बांध लिया। युद्ध कितना भयंकर होता है इसे योद्धा अच्छी तरह से जानते है। कहाँ रत्नशेवर की बडी भारी सेना और कहो अकेला जम्बूकूमार। किन्तु जम्बूकुमार ने अपने बुद्धि कौशल और आत्मबल से शत्रु पर अपनी वीरता का सिक्का जमा लिया, बन्दो हुए. केरल नरेश को बन्धन से मुक्त किया; उसको सुपुत्री विलासवती का विम्बसार के साथ विवाह करा दिया; और केरल नरेश मगाक तथा रत्न शेखर में परस्पर मेल करा दिया। इन सब घटनाओ मे जम्बूकूमार की महानता का पता चलता है। जम्बूकुमार जब केरल से वापिस लोट कर पा रहा था, तब उसे विपुलाचल पर सुधर्म गणधर के आने का पता चला । वह उनके समीप गया, और नमस्कार कर थोड़ी देर एकटक दृष्टि में उनकी ओर देखता रहा। जम्बकुमार का उनके प्रति आकर्षण बढ़ रहा था। पर उसे यह स्मरण न हो सका कि मेरा इनके प्रति इतना आकर्षण क्यो है ? क्या मैने इन्हे कही देखा है, इस अनूगग का क्या कारण है ? तब उसने समीप में जाकर पुनः नमस्कार किया और उनसे अपने अनुराग का कारण पूछा। तब उन्होने बतलाया कि पूर्व जन्मों में मैं और तुम दोनों भाईभाई थे । हम दोनों में परस्पर बड़ा अनुराग था। मेरा नाम भवदत्त और तुम्हारा नाम भवदेव था। सागरसेन या सागरचन्द्र पुण्डरीकिणी नगरी में चारण मुनियों से अपने पूर्व जन्म का वृत्तान्त सुन कर देह-भोगों से विरक्त हो मुनि हो गया और त्रयोदश प्रकार के चारित्र का अनुष्ठान करते हुए भाई के सम्बोधनार्थ वीतशोका नगरी में पधारे । वहाँ भवदेव का जीव चन्द्रवती का शिवकुमार नामक पुत्र हुआ था । शिवकुमार ने महलों के ऊपर से मुनियों को देखा, उससे उसे पर्वजन्म का स्मरण हो आया और देहभोगों से उसके मन में विरक्तता का भाव उत्पन्न हना। उससे राजप्रासाद में कोलाहल मच गया। शिवकुमार ने माता-पिता से दीक्षा लेने की अनुमति मांगी। पिता ने बहुत पा, पार कहा-तप और व्रता का अनुष्ठान घर म भी हो सकता है। दीक्षा लन की आवश्यकता नही है। पिता के अनुरोधवश कुमार ने तरुणी जनों के मध्य में रहते हए भी विरक्त भाव में ब्रह्मचर्य व्रत का अनुष्ठान किया। इस असिधारा व्रत का पालन करते हा शिवकुमार दूसरों के यहाँ पाणिपात्र में प्राशुक आहार करता था । प्राय के अन्त में ब्रह्म स्वर्ग में विद्य न्माली देव हुआ। मैं भी उसी स्वर्ग में गया । वहाँ से चयकर मैं सुधर्म हुआ हूँ और तुम जम्बूकुमार नाम के पुत्र हुए। यही तुम्हारा मेरे प्रति स्नेह का कारण है। जम्बूकुमार ने मुधर्म स्वामी का उपदेश मुना, उससे उसके हृदय में वैराग्य का प्रवाह उमड़ आया, और उसने सुधर्माचार्य मे दीक्षा देने के लिए निवेदन किया। तब उन्होंने कहा कि जम्बूकुमार ! तुम अपने मातापिता मे आज्ञा लेकर ग्रामो, तब दीक्षा दी जाएगी। कुटुम्बियों ने भी अनुरोध किया, और कहा कि कुमार ! अभी दीक्षा न लो। कुछ समय बाद ले लेना । अतः जम्बू कुमार घर वापिस आ गया। माता-पिता ने उसे विवाह के बंधन में बाँधने का प्रयत्न किया। तब जम्बकुमार ने विवाह कराने से इनकार कर दिया। सेठ प्रहदास ने अपने मित्र सेठों के घर यह सन्देश भिजवा दिया कि जम्बूकुमार विवाह कराने से इनकार करता है। अतः आप अपनी पुत्रियों का सम्बन्ध अन्यत्र कर सकते हैं। उनकी पुत्रियों ने कहा कि विवाह तो उन्हीं से होगा, अन्यथा हम कुमारी रहेंगी। वे एक रात्रि हमें दे, उसके बाद उन्हें दीक्षा लेने से कोई नहीं रोकेगा। अत: विवाह हुआ। विवाह के पश्चात् जम्बूकुमार घर आया और रात्रि में स्त्रियों के मध्य में बैठकर चर्चा होने लगी। बहुएं अनुरागवर्धक अनेक प्रश्नोत्तरों और कथा कहानियों, दृष्टान्तों द्वारा जम्बूकुमार को निरुत्तर करने या रिझाने में समर्थ न हो सकीं। उन्होंने शृङ्गार परक हाव-भाव रूप चेप्टानों का अवलम्बन भी लिया, किन्तु जम्बूकुमार पर वे प्रभाव डालने में सर्वथा असमर्थ रहीं। विद्युत चोर अपने साथियों के साथ जिनदास के घर चोरी करने पाया, पौर छिपकर खड़ा
SR No.010227
Book TitleJain Dharm ka Prachin Itihas Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmanand Jain
PublisherRameshchandra Jain Motarwale Delhi
Publication Year
Total Pages591
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size65 MB
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