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________________ १५वीं, १६वीं, १७वी और १८वी शताब्दी के आचाय, भट्टारक और कवि ४६६ दम्पति ने मुनिराज द्वारा निर्दिष्ट कोइल पंचमी व्रत का विधि पूर्वक पालन किया। व्रत समाप्त होने पर उसका उद्यापन किया। कालान्तर में वे भी सन्यास पूर्वक स्वर्ग वासी हए। इसमें जीव दया पालन करने का फल बतलाया गया है। इसी तरह अन्य सब कथाएं दी गई हैं। कथाएं अप्रकाशित हैं। बुध विजयसिंह कवि के पिता का नाम सेठ विल्हण और माता का नाम राजमती था। कवि का वंश पद्मावती पूरवाल था पौर यह मेरुपुर के निवासी थे । कवि ने अपने गुरु का नामोल्लेख नही किया। कविको एकमात्र कृति 'अजित पुराण' उपलब्ध है जिसका रचना काल वि० सं०१५०५ कार्तिकी पूर्णिमा है। इससे कवि का समय सं०१४८५ से १५१५ तक समझना चहिए। अजित नाथ पुराण इस ग्रन्थ में १० संधियाँ हैं, जिनमें जैनियों के दूसरे तीर्थकर अजितनाथ का जीवन परिचय अंकित किया गया है । रचना साधारण हैं, भाषा अपभ्रंश होते हुए भी उसमें देशी शब्दों की बहुबलता है। ___ कवि ने इस ग्रन्थ की रचना महाभव्य पं० कामराय के पुत्र देवपाल की प्ररणा से की है । ग्रन्थ की आद्यन्त प्रशस्ति में कामराय के परिवार का सक्षिप्त परिचय कराया है । और लिखा है कि वणिपुर या वणिक पुर नाम के नगर में खंडेल वाल वंश में कउडि (कोडी) नाम के पंडित थे उनके पुत्र छीतू या छोतर थे, जो बड़े ध की ११ प्रतिमाओं का पालन करते थे। वही पर लोकमित्र पडित खेता थे, उनके प्रसिद्ध पुत्र कामराय थे। कामराय की पत्नी का नाम कमलश्री था, उससे तीन पुत्र उत्पन्न हुए थे। जिनका नाम जिनदास, रयणु और दिउपाल (देवपाल) था। उसने वहां वर्धमान का एक चैत्यालय बनवाया था, जो उत्तु गध्वजारों से अलंकृत था । और जिस में वर्धमानतीर्थकर की प्रशान्त मूर्ति विराजमान थी। उसी देवपाल ने यह चरित्र ग्रन्थ बनवाया था। कवि ने प्रथम सन्धि में जिनसेन, अकलंक, गूणभद्र, गद्ध पिच्छ, पोढिल्ल (प्रोप्ठिल्ल) लक्ष्मण और श्रीधर कवि का नामोल्लेख किया है। कवि ने इस ग्रन्थ की रचना स० १५०५ में कार्तिकी पूर्णिमा के दिन की है। समएह पणदह सएह पंचतह कत्तिय पुण्णिम वासरे। ससिद्ध गंथुइउ विसिंह किउ वुह दिउपालकयादरे ॥३२५ भट्टारक शुभचन्द्र यह मलसंघ दिल्ली पट्ट के भट्टारक पद्मनन्दी के पटधर शिप्य थे। यह पद्मनन्दी के पटपर कब प्रतिष्ठित हए, इसका निचिय समय तो ज्ञात नहीं हो सका, पर वे संभवतः १४७० और १४७ समय पट्ट पर प्रतिष्ठित हुए थे। ग्वालियर लश्कर के नयामन्दिर के चोबोसी धातु की मति लेख में सं० १४७९ में भ० शुभचन्द्र का उल्लेख है। अतः वे उससे पूर्व ही पट्ट पर प्रतिष्ठित हुए जान पड़ते हैं। यह अपने समय के प्रच्छे विद्वान थे। इनकी दो कृतियां मेरे अवलोकन में आई हैं। 'सिद्ध चक्र कथा' और श्री शारदा स्तवन । शारदा स्तवन के वें पद्य में-श्री पद्मनन्दीन्द्र मुनीन्द्र पटे शुभोपदेशी शुभचन्द्रदेवाः' वाक्य द्वारा उन्होंने अपना उल्लेख किया है। यह प्रतिष्ठाचार्य भी रहे हैं । इनके समय में ग्रन्थों की प्रतिलिपियाँ भी हुई हैं। इनके पट्टधर शिष्य जिनचन्द्र थे भ० शुभचन्द्र संभवतः १५०२ तक उस पट्ट पर प्रतिष्ठित रहे हैं। १. "तत्पट्टांबुधिः सच्चन्द्रः शुभचन्द्रः सतांवरः । पंचाक्षवन दावग्नि कषायाममा धराशनिः । २०-मूलाचार प्रशस्ति तासु पट्टी रयणत्तय धारउ, संजायउ सुचन्द भडारउ । सिद्ध चक्र कथा प्रशस्ति पुण उवण्ण सिंहासण मंडण, मिच्छावाइ वाय-भड-खंडण, साबय चरिउ प्र०
SR No.010227
Book TitleJain Dharm ka Prachin Itihas Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmanand Jain
PublisherRameshchandra Jain Motarwale Delhi
Publication Year
Total Pages591
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size65 MB
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