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________________ ૪૨૭ १५वीं १६वीं १७वी और १५वीं शताब्दी के आचार्य, भट्टारक और कवि कवि की दूसरी रचना मल्लिनाथ 'काव्य' है । जिसमें १६वें तीर्थकर मल्लिनाथ का जीवन परिचय दिया हुआ है। आमेर शास्त्र भण्डार की यह प्रति त्रुटित है, इसके प्रादि के तीन पत्र और अन्तिम पत्र भी उपलब्ध नही है । इस ग्रन्थ की रचना पृथ्वीराज (संसारचन्द) चोहान के राज्य में हुए हैं। इसीलिए कवि ने 'चिरणंदर देसु पुसहमि णरेसु ' वाक्य में उनका उल्लेख किया । पृथ्वीराज भोजराज चौहान करहल का पुत्र था, इसकी माता का नाम नाइक्क देवी था । पार्श्वनाथ चरित के कर्ता सवाल (सं० १४७६) ने उसके राज्य की सं० १४७१ की घटना का उल्लेख किया है, उक्त १४७१ में भोजराज के मंत्रो यदुवंशी अमरसिंह ने रत्नमयी जिन बिम्ब को प्रतिष्ठा की थी। वि हल्ल के मल्लिनाथ काव्य के कर्ता की लोणासाहु ने प्रशसा की थी। इसमे उक्त मल्लिनाथ काव्य सं० १४७१ या १४७० की रचना है | अतः कवि का समय सं० १४५० से १४७५ है । कवि की तीसरी कृति 'श्रीपालचरित्र' है । यह भी अपभ्रंश भाषा में रचा गया है । इसकी ६० पत्रात्मक प्रति दि० जैन मंदिर दीवानजी कामा के शास्त्र भण्डार में सुरक्षित है । ( राजस्थान ग्रन्थ सूची भाग ५ पृ० ३६३) कवि असवाल कवि का वंश गोलाराड या गोलालारे था । यह पंडित लक्ष्मण का पुत्र था । कवि कहां का निवासी था । कवि ने इसका उल्लेख नहीं किया। पर कवि ने मूल संघ बलात्कारगण के भ० प्रभाचन्द्र, पद्मनन्दी, शुभचन्द्र और धर्मचन्द्र का उल्लेख किया है । अतः कवि इन्हीं की आम्नाय का था । संवत् १४६ मे कवि के पुत्र विद्याधर ने भ० अमरकीर्तित के 'पट् कर्मोपदेश' की प्रति लिखी थी । यह ग्रन्थ नागौर के शास्त्र भंडार में सुरक्षित है । कवि की एक मात्र कृति पार्श्वनाथचरित्र है । जिसमें १३ सधियां है । जिनमें २३वें तीर्थकर पार्श्वनाथ की जीवन गाथा दी हुई है । ग्रन्थ में पढडिया छन्द की बहुलता है । ग्रन्थ की भाषा उस समय की है जब हिन्दी भाषा अपना विकास और प्रतिष्ठा प्राप्त कर रही थी । भाषा मुहावरेदार है। रचना सामान्य है । यह ग्रन्थ कुशार्त देश में स्थित 'करहल " नगर निवासी साहु सांणिग के अनुरोध से बनाया था, जो यदुवंश में उत्पन्न हुए थे । उस समय करहल में चौहान वंशी राजाओं का राज्य था । इम ग्रन्थ की रचना वि० सं० १४७६ भाद्रपद कृष्णा एकादशी को बनाकर समाप्त की गई थी । ग्रन्थ निर्माण में कवि को एक वर्ष का समय लगा था । ग्रन्थ निर्माण के समय करहल में चौहान वंशी राजाभोजराज के पुत्र संसारचन्द्र ( पृथ्वीसिंह) का राज्य था। इनकी माता का नाम नाइक्कदेवी था और यदुवंशी अमरसिंह भोजराज के मंत्री थे, जो जैन धर्म के संपालक थे । इनके चार भाई और भी थे, जिनके नाम करमसिंह, समरसिह, नक्षत्रसिह और लक्ष्मणसिंह थे । अमरसिंह की धर्म पत्नी का नाम कमल श्री था । उससे तीन पुत्र उत्पन्न हुए थे । नन्दन, सोणिग और लोणा साहु । इनमें लोणा साहु जिनयात्रा, प्रतिष्ठा आदि प्रशस्त कार्यों में द्रव्य का विनियम करने थे और अनेक विधान - उद्यापनादि कार्य कराते थे । उन्होंने मल्लिनाथ चरित के कर्ता कवि 'हल्ल' को प्रशसा की थी । लोणा साहू के अनुरोध मे कवि असवाल ने पार्श्वनाथ चरित की रचना उनके ज्येष्ठ भ्राता सोणिग के लिए की थी । प्रशस्ति में सं० १४७१ में राजा भोजराज के राज्य में सम्पन्न होने वाले प्रतिष्ठोत्सव का भी उल्लेख किया है, जिसमें रत्नमयी जिन विम्ब की प्रतिष्ठा सानन्द सम्पन्न हुई थी । I कवि की अन्य क्या रचना है अन्वेषण करना आवश्यक है । कवि का समय १५ वीं शताब्दी का तृतीय चरण है । १. अहो पंडिय लक्खरण सुय गुलग, गुलराड वंसि धयवड अहंग । जैन ग्रन्थ प्रशस्ति० भा० २ पृ० १२६ पंडित असवाल सुन विद्याधर नामा लिलेखि । " २. गोलाराडान्वये इक्ष्वाकुवंशे श्री मूलसवे ३. कुशातं देश सूरसेन देश के उत्तर में ( नागौर शास्त्र भन्डार प्रति ) वसा हुआ था और उसकी राजधानी गौरो पुर थी, जिसे यादवों ने बसाया था । जरा संघ के विरोध के कारण यादवों को इस प्रदेश को छोड़कर द्वारिका को अपनी राजधानी बनानी पड़ी थी। ४. करहल इटावा से १३ मील की दूरी पर जमुना नदी के तट पर बसा हुआ है, वहां चौहान वंशी राजाओं का राज्य रहा है। यहां शिखरबन्द चार जैन मन्दिर है । और अच्छा शास्त्रभंडार भी हैं ।
SR No.010227
Book TitleJain Dharm ka Prachin Itihas Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmanand Jain
PublisherRameshchandra Jain Motarwale Delhi
Publication Year
Total Pages591
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size65 MB
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