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________________ जैन धर्म का प्राचीन इतिाहम - भाग २ बालचन्द मलधारि मूल सघ, देशीय गण कोण्ड कुन्दान्वय पुस्तकगच्छ इंगलेश्वर वलिक त्रिभुवनकीर्ति रावल के प्रधान शिष्य थे । इनके प्रिय गृहस्थ शिष्य संजय के पुत्र वोम्मिसेट्टि तथा मेलब्वे से उत्पन्न मल्लि सेट्टि ने ते नगेर वसदि के प्रसन्न पार्श्वदेव के लिये तम्मडियहल्लि में सुपारी के २००० पेड़ों के दो हिस्से वशानु वंशतक जाने के लिये अलग निकाल दिये । और दोपनायक पोन्नव्वेसे उत्पन्न चेल्ल पिल्ले को अर्पित कर दिये । चेल्लपल्लेनेजो सवनगिरि श्रोर बालेन्दु-मल धारि देव का शिष्य था । अमरापुर के इस लेखका समय शक १२०० (सन् १२७८ ई० है । अता व नालचन्द्र मलधारि का समय ईसा की १३वी शताब्दी है । ४३२ वादिराज (द्वितीय) यह वादिराज की शिष्य परम्परा के विद्वान थे । ४६५ नं के शिलालेख में, जो शक्म० ११२२ (वि० स० १२५७ के लगभग का उत्कीर्ण किया हुआ है, लिखा है कि पट् दर्शन के अध्येता श्रीपादव के स्वर्गवास हो जाने पर उनके शिष्य वादिराज (द्वितीय) ने परवादिमल्ल जिनालय' नाम का मन्दिर बनवाया था । और उसकी पूजन तथा मुनिया के आहार दान के लिये कुछ भूमि का दान दिया। प्रस्तुत वादिराज गग नरेश राचमल्ल चतुर्थ या सत्य वाक्य के गुरु थे । इनका समय विक्रम का १३वी शताब्दी है । (जैनलेख स० भा० ११०४०८) त्रिविक्रमदेव (प्राकृत शब्दानुशासन के कर्ता ) यह ग्रनन्दित्रैविद्य मुनि के शिष्य थे । त्रिविक्रम का कुल वाणस था । ग्रादित्यवर्मा के पौत्र और मल्लिनाथ के पुत्र थे । इनके भाई का नाम भाम (देव) था जो वृत्त और विद्या का धाम (स्थान ) था । यह दक्षिण देश के निवासी थे । इनकी एक मात्र कृति 'प्राकृत शब्दानुशासन' है । जो तीन अध्यायों में विभक्त है और स्वोपज्ञ वृत्ति से युक्त है । प्रत्येक अध्याय के चार-चार पाद हैं। इसमें हेमचन्द्र के प्राकृत व्याकरण में दिये हुए अपभ्रंश पद्या को उद्धृत किया है, और उनके पद्यों को उद्धृत कर उनका खण्डन भी किया है। इसमे यह निश्चित है कि प्रस्तुत व्याकरण का रचना काल हेमचन्द्र के बाद, विक्रम की १३वी शदी है, डा० ए० एन० उपाध्ये ने इनका समय १२३६ ई० बतलाया है | व्याकरण बहुत अच्छा है, इसका अध्ययन करने से प्राकृत भाषा का अच्छा परिज्ञान हो जाता है । डा० पी० एल० वैद्य ने इसका सम्पादन किया है, और यह ग्रंथ जीवराज ग्रंथमाला शोलापुर से सन् १९५४ में प्रकाशित हो चुका है । भट्टारक प्रभाचन्द यह मूलमंघ के भट्टारक रत्नकीर्ति के पट्टधर थे । रत्नकीर्ति और प्रभाचन्द्र नाम के अनेक विद्वान प्राचार्य और भट्टारक हो गए है। उनमें यह भट्टरक प्रभाचन्द्र उन रत्नकीर्ति के पट्धर थे जो भ० धर्मचन्द्र के प्रपट्ट पर अजमेर में प्रतिष्ठित हुए थे, जिन का समय पट्टावली में स० १२९६ से १३१० बनलाया गया है । पट्टे श्री रत्नकीर्तेरनुपमतपसः पूज्यपादीयशास्त्र - व्याख्या विख्यातकीर्ति गुणगणनिधिपः सत्क्रियाचारचंचः । १. श्रुभ रहनन्दि विद्यमुनेः पदाम्बुज भ्रमरः । श्री बाण सकुल कमनद्य मरोरादित्यवर्मणः पौत्रः ॥ श्रीमल्लिनाथ पुत्रो लक्ष्मीगर्भामृताम्बुधिसुधांशुः । भाग्य वृत्त विद्याधाम्नो भ्राता त्रिविक्रम. सुकविः ॥ ३
SR No.010227
Book TitleJain Dharm ka Prachin Itihas Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmanand Jain
PublisherRameshchandra Jain Motarwale Delhi
Publication Year
Total Pages591
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size65 MB
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