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________________ ६ जैन धर्म का प्राचीन इतिहास भाग २ वती, मृगावती, ज्येष्ठा, चेलना और चन्दना था। इनमें त्रिशला कुण्डपुर के राजा सिद्धार्थ को विवाही थी । सुप्रभा दशार्ण देश के राजा दशरथ को, और प्रभावती कच्छदेश के राजा उदायन की रानी थी। मृगावती कौशाम्बी के राजा शतानीक की पत्नी थी । चलना मगध के राजा विम्बसार (श्रेणिक) की पटरानी थी । ज्येष्ठा और चन्दना आजन्म ब्रह्मचारिणी रही। ये दोनो ही भगवान महावीर के सघ में दीक्षित हुई थी। उनमें चन्दना आर्यिका श्री में प्रमुख थी, सघ की गणनी थी । सिहभद्र वज्जिसघ की सेना के सेनापति थे । इस तरह चेटक का परिवार खूब सम्पन्न था। वज्जिसंघ में गणतन्त्र सम्मिलित थे, जिनमें वृजि, लिच्छवि, ज्ञात्रिक, विदेह, उग्र, भोग और कौरवादि आठ जातियाँ शामिल थी । ह वृज लोगों में प्रत्येक गाव का एक सरदार राजा कहलाता था। लिच्छवियों के अनेक राजा थे, और उनमें प्रत्येक के उपराज, सेनापति और कोपाध्यक्ष आदि अलग-अलग होते थे । ये सब राजा अपने अपने गांव के स्वतंत्र शासक थे; किन्तु राज्य कार्य का संचालन एक सभा या परिषद् द्वारा होता था । यह परिपद ही लिच्छवियों की प्रधान - शामन शक्ति थी । शासन प्रबन्ध के लिये सभवत उनमें से नौ श्रादमी गण राजा चुने जाते थे । इनका राज्याभिषेक एक पोखरनी के जल से होता था । वैशाली गणतत्र के अधिकाश निवासी व्रात्य कहलाते थे । ये अर्हन्त के उपासक थे । उनमें जैनियों के तेईसवें तीर्थकर भगवान पार्श्वनाथ का शासन या धर्म प्रचलित था । वर्तमान वसाद के समीप ही 'वासुकुण्ड' नाम का ग्राम है, वहाँ के निवासी परम्परा से एक स्थल को भगवान महावीर की जन्म भूमि मानते आये है और उन्होंने पूज्य भाव से उस पर कभी हल नही चलाया । समीप ही एक विशाल कुण्ड है, जो अब भर गया है और जीता बोया जाता है। वैशाली की खुदाई मे एक ऐसी प्राचीन मुद्रा भी मिली है, जिसमे 'वैशाली नाम कु डे' ऐसा उल्लेख है। इन सब प्रमाणो के आधार पर विद्वानो ने वासुकुण्ड को महावीर की जन्मभूमि कुण्डग्राम स्वीकार किया है। वैशाली के पश्चिम में गण्डकी नदी बहती थी। उसके पश्चिम तट पर क्षत्रिय कुण्डपुर, ब्राह्मण कुण्डपुर, वाणिज्यग्राम, कर्मारग्राम और कोल्लाग सन्निवेश आदि उपनगर एवं शाखानगर अवस्थित थे। क्षत्रिय-कुण्डपुर में गान, गान, ज्ञान या णाह क्षत्रियों के पाचमो घर पे । राजा सिद्धार्थ क्षत्रिय कुण्डपुर के अधिनायक थे। वे राजा सर्वार्थ और रानी श्रीमती के धर्मात्मा पुत्र थे । उन्हें प्रयास और यशाश भी कहते थे। वे काश्यप वश के चमकते रत्न थे । सिद्धार्थ वीर योद्धा और पराक्रमी शासक थे । राजा सिद्धार्थ का विवाह वेगाली गणतंत्र के अध्यक्ष राजा चेटक की अत्यन्त सुन्दर एवं विदुषा पुत्री त्रिशला के साथ सम्पन्न हुआ था, जिसका अपर नाम 'प्रिय - कारिणी' था, और जो लोक में 'विदेहदत्ता' के नाम से प्रसिद्ध थी । वह पुण्यात्मा प्रोर सौभाग्यशालिनी थी । राजा सिद्धार्थ नाथ या ज्ञात क्षत्रियों के प्रमुख नेता के रूप में ग्यान थे। इसी कारण वे सिद्धार्थ कहलाते थे । वे शस्त्र और शास्त्र विद्या में पारगामी थे और भगवान पार्श्वनाथ के उपासक थे । (ग्रा) सिन्ध्वाव्यविषये भूभद् वैशाली नगरेऽभवत् । arrant वियानो विनीत परमार्हत. ॥ ३ ॥ तम्य देवी मुभद्राम्या तयो पुत्रा दशाभवन् । घनाख्यो दन्तभद्रान्तावुपेन्द्रो ऽन्य सुदत्तवान् ॥ ४ ॥ मिहभद्र सुकुम्भोजो कंपन सपनगवः । प्रभजन प्रभामश्च धर्मा इव मुनिर्मला ||५|| - उत्तर पुराणे गुणभद्र प ७५ १. भारतीय इतिहास को रूप-रेखा भा० १ पृ० १३४ २ श्रमण भगवान महावीर पृष्ठ ५ ३. श्वेताम्बरीय ग्रन्थों में त्रिशला को राजा चेटक की बहिन बतलाया है। चेटक की अन्य पुत्रियो के नामों में भी विभिभिन्नता है । चन्दना को प्रगदेश के राजा दधिवाहन की पुत्री बतलाया है ।
SR No.010227
Book TitleJain Dharm ka Prachin Itihas Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmanand Jain
PublisherRameshchandra Jain Motarwale Delhi
Publication Year
Total Pages591
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size65 MB
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