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________________ ३३२ जैन धर्म का प्राचीन इतिहास-भाग २ दामनन्दि विद्य दामनन्दि मूलसंघ, देशियगण, पुस्तकगच्छ और कून्दकून्दान्वय में प्रसिद्ध गुणचन्द्र देव के प्रशिष्य और नयकीति सिद्धान्तदेव के शिप्य थे। इनके छोटे भाई बालचन्द्र मुनीन्द्र थे। सोम सेट्टि ने पार्श्वजिन को अष्ट विध पूजन और मन्दिर की मरम्मत और मुनियो के ग्राहारदान के लिए दान दिया था और कुछ भूमि बालचन्द्र मुनि के पाद प्रक्षालन पूर्वक दी गयी थी। यह लख शक स० ११०० सन् ११७८ ईसवी का है । अतः इन दामनन्दि का समय १२वी शताब्दी है। जैनलेख स० भ०३ ले० न० ३६४ पृ०१७७ कुलचन्द्र मुनीन्द्र कूलचन्द्र सिद्धान्त मुनीन्द्र-यह कुलभूषण सिद्धान्त मुनीन्द्र के शिप्य थे । धवला की हस्तलिखित प्रतियों में सत्प्ररूपणा विवरण के अन्त में कनाड़ी प्रशस्ति पाई जाता है। उसमें तीन प्राचार्यों की प्रशंसा की गई है। पद्मनन्दि सिद्धान्त मुनीन्द्र, कुलभूषण सिद्धान्त मुनीन्द्र और कुलचन्द्र सिद्धान्त मुनीन्द्र । जितयश से उज्वल कुलचन्द्र सिद्धान्त मुनान्द्र का उद्भव जंगमतीर्थ के समान था । वे सदा काय मौर मन से सच्चारित्रवान् दिना दिन शक्तिमान् पार नियमवान हात हुए उन्होंने विवेक बुद्धि द्वारा ज्ञान दोहन कर कामदेव को दूर रखा। सच्चारित्रवान् हाना हा कामदव के काध से बचने का एक मात्र मार्ग है । इससे उनकी चारित्र निष्ठता का पता चलता है। यह वही कलचन्द्र ज्ञात हात है जिनका उल्लख श्रवण वल्गोल के ४०वे (६४) लेख में पाया जाता है। विद्धकर्णादिक पद्मनन्दी सद्धान्तकाख्योऽजनि यस्य लोके । कौमारदेव वातताप्रासाद्ध जोयात्तु सोज्ञाननिधिः सधीरः ।। तच्छिष्य: कुलभषणाख्यर्यातपश्चारित्रवारांनिधि कल स्सिद्धान्ताम्बुधिपारगो नविनेयस्तत्सधर्मो महान् । शब्दाम्भोरुहभास्करः प्रथितर्कग्रन्थकारः प्रभाचन्द्राख्यो मुनिराज पडितवरः श्रीकुण्डकुन्दन्वयः ।। तस्य श्रीकुलभूषणाख्य सुमुनेश्शिष्ये विनेयस्तुत स्सद्वृत्तः कुलचन्द्रदेव मुनिपस्सिद्धान्तविद्यानिधिः ॥ इन पद्या में पद्मनन्दि, कुलभूषण और बुलचन्द्र मुनिया के बीच गुरु-शिष्य परम्परा का स्पष्ट उल्लेख है। इनमें पद्मनन्दि सैद्धान्तिक को, ज्ञानि निधि, सधार, अविद्धकर्ण ओर कामारदेव व्रती बतलाया है । वे कर्ण छेदन सस्कार से पहले ही दीक्षित हो गए थे। अतएव व कामारदव व्रतो भी कहलाते थे। अर्थात वे बाल ब्रह्मचारो थे। इनके एक शिष्य प्रभाचन्द्र थे, जो शब्दाम्भोज भास्कर पार प्रथित तक ग्रन्थकार थे । कुलभूषण को चारित्र वा रांनिधि और सिद्धान्ताम्बूधि पारग बतलाया है। ओर कुलचन्द्र को बिनय, सदवृत्त और सिद्धान्त विद्यानिधि कहा है। इनका समय सन् ११३३ के लगभग होना चाहिए । कुलचन्द्र के शिप्य माधनन्दि सैद्धान्तिक थे, जो कोल्हापूर की रूपनारायण वसदि के प्रधानाचार्य थे । इनका परिचय आगे दिया गया है। कुलचन्द्रमुनि-मूलसघान्वय क्राणूरगण के विद्वान परमानन्द सिद्धान्त देव के शिष्य थे। इन्हें भुवनैक मल्ल के सुपूत्र ने, जिस समय उनका राज्य प्रवर्धमान था, और जो बंकापुर में निवास करते थे। उनके पाद पद्योप १. सतत काल कायमति सच्चरित दिर्नाद दिनक्के वीर्य नलेददु मिक्क नियमगल नातु विवेकबोध दोहं तवे कतु मन्युगिर्द सच्चरित कुलचन्द्र देव सेदात मुनीन्द्र रूजितयशोज्वल जगमतीर्थरुद्भवम् । -धवला पु० २ प्रस्तावना पृ० ३
SR No.010227
Book TitleJain Dharm ka Prachin Itihas Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmanand Jain
PublisherRameshchandra Jain Motarwale Delhi
Publication Year
Total Pages591
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size65 MB
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