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________________ ग्थारहवी और बारहवी शताब्दी के विद्वान, आचार्य २६३ से रहित, पापों के नाशक, महाव्रतके पालक पार मुनियों में श्रेष्ठ थे। जैसा कि नागकुमार चरित के निन्न पद्य से स्पष्ट है : अजनि तस्य मुनेवर दीक्षितो, विगतमानमदो दुरितान्तकः । कनकसेनमुनि मुनिपुंगवो, वरचरित्रमहावतपालकः ।। वे जिनागम के वेदी, ससार रूप वन का उच्छेद करने वाल और कर्मेन्धन के जलाने में पटु थे । जैसा कि भैरव पद्मावती कल्पकी प्रशस्ति के निम्न पद्य से प्रकट है : जिन समयागमवेदी गुरुतर संसारकाननोच्छेदी। कर्मेन्धनदहनपटुस्तच्छिष्यः कनकसेनगणिः ॥५६ इन कनकसेन के शिप्य जिनमेन थे ओर मतीर्थ थे नरेन्द्रसेन । मल्लिपण इन्ही जिन मेन के शिष्य थे। सतीर्थ होने के कारण मल्लिषेण ने नरेन्द्रसेन का गुरु रूप मे स्मरण किया है। च कि मल्लिपंण ने अपना महापुराण शक स० ६६६ (सन् १०४७ ई०) मे समाप्त किया है । अत. कनकमेन का समय दशवी शताब्दी का उपान्त्य है। नरेन्द्रसेन (प्रथम) नरेन्द्रमेन नाम के अनेक विद्वान हा गए है। एक नरेन्द्रमेन अजितसेन के शिप्य कनकमेन द्वितीय (सन् १६० ई०) के शिप्य और जिनमेन के मधर्मा थे। वादिराज ने शक वर्ष ६४४ (सन् १०२५) मे इन्ही नरेन्द्रमेन का स्मरण किया है । क्योकि उसमे कनकगेन के साथ नरेन्द्र सेन का भी उल्लख है । देखो (न्याय विनिश्चय विवरण प्रशस्ति) मल्लिपेण सूरिने जा जिनसेन के शिष्य थे। अपने गुरु भाई नरेन्द्र मेन को नागकमार चरित को प्रशस्ति में उज्ज्वल चरित्रवान, प्रख्यातकीति, पुण्य मति, तत्त्वज्ञ और कामविजयी बतलाया है जैसाकि नागकमार चरित की प्रशस्ति के निम्न पद्य मे प्रकट है : तस्यानुजाश्चारु चरित्र वृत्तिः प्रख्यातकीति भुविपुण्यमूतिः । नरेन्द्रसेनो जितवादिसेनो विज्ञानतत्त्वो जितकामसूत्रः ॥४ जिनमेन के सधर्मा होने से मल्लिपंण ने इन्हे भी अपना गुरु माना है। तच्छिष्यो विभदाग्रणीर्ग णनिधिः श्रीमल्लिषेणाहयः । संजातः सकलागमेषु निपुणो वाग्देवतालकृतिः ।। इन नरेन्द्र मेन का समय पी० बी० देसाई ने सन् १०२०ई० बनलाया है। इनके शिष्य नयसेन प्रथम थे। जिनका समय पी० बी० देसाई ने सन् १०५० ई. बतलाया है। चालूक्य चक्रवति त्रैलोक्यमल्ल सोमेश्वर (सन् १०५३-१०६७) के शासन काल में उसके सन्धि विग्रहाधिकारी बेलदेव की प्रार्थनानुमार सिन्दकचरम ने मलगुन्द के जिन मन्दिर को भूमिदान देने का प्रस्ताव किया है। उसमें मुख्यतः बेलदेव क गुरु नयसेन अोर नयमेन के गुरु नरेन्द्रसेन का वर्णन दिया है । नरेन्द्रसेन द्वितीय-विद्यचक्रेश्वर प्रस्तुत नरेन्द्रसेन मूल मघ सेनान्वय चन्द्रकवाट अन्वय के इन्ही नयमेन के शिष्य थे । और व्याकरण शास्त्र के महान पडित थे। चालुक्य चक्रवर्ती भुवनेकमल्ल सोमेश्वर द्वितीय (मन् १०६८) से पूजित गुणचन्द्र देव ने नरेन्द्रसेन मुनि को 'विद्य' बतलाया है मूलगुन्द के मन् १०५३ के शिलालेख में नरेन्द्रसेन को व्याकरण का पडित बतलाते हए लिखा है कि-'चन्द्र, कातत्र, जैनेन्द्र शब्दानुशासन, पाणिनी, इन्द्र आदि व्याकरण ग्रथ नरेन्द्रसेन के लिये एक प्रक्षर के समान है। यथा-- १ Jainism in South India p 139 २ जैन लेख स० भा० ४ १० ११५ मे लक्ष्मेश्वर (मैसूर) का लेख १६५ ३ जैन लेख संग्रह भाग ४ पृ०६० मे मूल गुन्दका मन्० १०५३ का लेख
SR No.010227
Book TitleJain Dharm ka Prachin Itihas Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmanand Jain
PublisherRameshchandra Jain Motarwale Delhi
Publication Year
Total Pages591
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size65 MB
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