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________________ २८८ जैन धर्म का प्राचीन इतिहास-भाग २ समान चतुर थे । और इनकी बुद्धि तत्त्व विचार में प्रवीण थी। जैसाकि निम्न पद्य से स्पष्ट है: माधवसेनोऽजनि मुनिनाथो ध्वसितमाया मदनकदर्थः । तस्य गरिष्ठो गुरुरिव शिष्यस्तत्त्वविचार प्रवणमनीषः ।। इन्हीं माधवनेन के शिष्य अमितगति द्वितीय हए जिन्होंने सं० १०५० से १०७३ तक अनेक ग्रन्थों की रचना की है। इनका समय विक्रम की ११वीं शताब्दी का मध्य है। शान्तिदेव इनका उल्लेख मल्लिषेण प्रशस्ति में दयापाल के बाद ५१व पद्य में किया गया है। यह बड़े तपस्वी और अपने समय के विशिष्ट विद्वान थे। मल्लिषण प्रशस्ति के उक्त पद्य मे ज्ञात होता है कि इनके पवित्र चरण कमलों की पूजा होयसल नरेश विनयादित्य द्वितीय (सन् १०४७ से ११००ई०) करता था। लेख नं० २०० से भी इसका समर्थन होता है। यह विनयादित्य द्वितीय के गुरु थे। इस शिलालेख में जो शक सं० ६८४ (सन् १०६२ ई०) में १०४७ से सन् उत्कीर्ण किया गया है, उनके समाधिमरण द्वारा दिवंगत होने का उल्लेख है । इससे शान्ति देव का समय सन् १०६२ ई. तक है। अर्थात् यह ईसा को ११वी शताब्दी के विद्वान थे । नगर के व्यापारी संघ के लोगों ने अपने गुरु की स्मृति में यह स्मारक बनवाया है। अमितगति (द्वितीय) अमितगति (द्वितीय)-यह माथर संघ के विद्वान नेमिपेण के प्रशिप्य और माधवसेन के शिष्य थे। यह ग्यारहवीं शताब्दी के अच्छे विद्वान और कवि थे। अापकी कविता सरल और वस्तूतत्त्व की विवेचक है। कवि ने अपनी गुरु परम्परा निम्न प्रकार बतलाई है । वीरसेन शिष्य देवमेन, अमितगति प्रथम, नेमिषेण और माधवसेन । यह अपने समय के विशिष्ट विद्वान थे। और वाक्यतिराज मंज की सभा के एक रत्न थे । मूज का एक दान पत्र वि० सं०१०३६ का प्राप्त हना है जिसे उनके प्रधान मंत्री रुद्रादित्य ने लिखा था। वि० सं० १०७८ में तैलंग देश के राजा तलिप द्वारा मुंज की मृत्यु हुई थी। और उनकी मृत्यु के बाद भोज का राज्याभिषेक हुआ। अमितगति की निम्नकृतियाँ उपलब्ध हैं-सुभाषितरत्न सन्दोह, धर्मपरीक्षा, उपासकाचार (अमितगति श्रावकाचार) पंचसंग्रह, आराधना, तत्त्वभावना (सामायिक पाठ) और भावना द्वात्रिंशतिका । जिन्हें कवि ने वि० सं० १०५० से १०७३ के मध्य रचा था। सुभाषितरत्न सन्दोह-यह स्वोपज्ञ सुभाषित ग्रन्थ है। इसमें सांसारिक विषय निराकरण, कोप-लोभनिराकरण, माया-अहंकार निराकरण, इन्द्रिय निग्रहोपदेश, स्त्री गुण-दोष विचार, सदसत्स्वरूप निरूपण, ज्ञान निरूपण, चारित्र निरूपण, जाति निरूपण, जरा निरूपण, मृत्य-सामान्य नित्यता । देवजरा-जीव-सम्बोधन, दुर्जनसज्जन-दान, मद्य-निषेध, मांसनिषेध, मधुनिषेध, कामनिषेध, वेश्यासंगनिषेध, द्यूतनिषेध, प्राप्तविवेचन, गुरु स्वरूप, धर्मनिरूपण, शोकनिरूपण, शौच, श्रावक धर्म और द्वादश तपश्चरण, ये बत्तीस प्रकरण है । श्रावक धर्मका निरूपण १ देखो मल्लिषेण प्रशस्ति का ५१ वा पद्य २ सककालंगति-नाग-रन्ध्र-शुभकृत् मंवत्मरा षाढदोल् । सुकरं पौर्णमि-भौमवार मीसे दिलदा श्रवण"""। .."कदिन्दं वरे शान्तिदेवरमलर सन्यासनं गेटदु भक् । ति करं कै-वशमागे गेय्दू पडेदर निर्वाण-साम्राज्यम् ॥ जैन लेख सं० भा० २ १०२४५ ३ देखो, सुभाषितरत्न संदोह ग्रन्थ की प्रगस्ति । ४ देखो, विश्वेश्वरनाथ रेउ का 'गजा भोज । ५ विक्रमावासगदष्ट मुनि व्योमेन्दु (१०७८) संमिते । वर्षे मुझपदे भोज भूपः पट्टे निवेशितः ॥
SR No.010227
Book TitleJain Dharm ka Prachin Itihas Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmanand Jain
PublisherRameshchandra Jain Motarwale Delhi
Publication Year
Total Pages591
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size65 MB
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